कोलंबो|…. इन दिनों हमारा पड़ोसी देश श्रीलंका अपने अभूतपूर्व राजनीतिक एवं आर्थिक संकट से जूझ रह है. श्रीलंका में बुधवार को नए राष्ट्रपति का चुनाव होगा. राष्ट्रपति पद से गोटाबाया राजपक्षे के इस्तीफे के बाद इस पद के लिए चुनाव हो रहा है. प्रदर्शनकारियों के सड़कों पर आ जाने के बाद गोटाबाया देश छोड़कर पहले मालदीव और फिर सिंगापुर चले गए. उम्मीद है कि नए राष्ट्रपति चुनाव के बाद इस द्विपीय देश के हालात सुधरेंगे.
अभी रानिल विक्रमसिंघे देश के कार्यवाहक राष्ट्रपति हैं और वह इस पद के शीर्ष तीन उम्मीदवारों में शामिल हैं. दो अन्य उम्मीदवार एसएलपीपी के सांसद दुल्लास अल्हापेरूमा और नेशनल पीपुल पावर के नेता अनूरा कुमारा दिसानायके हैं.
श्रीलंका की मुख्य विपक्षी पार्टी के नेता सजिथ प्रेमदासा ने मंगलवार को राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी से अपना नाम वापस ले लिया. उन्होंने कहा कि वह इस पद के लिए प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार डलास का समर्थन कर रहे हैं.
श्रीलंका की संसद 44 वर्षों में पहली बार बुधवार को त्रिकोणीय मुकाबले में सीधे तौर पर राष्ट्रपति का चुनाव करेगी, जिसमें अंतिम क्षणों में राजनीतिक पैंतरेबाज़ी से कार्यवाहक राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे पर दुल्लास अल्हाप्पेरुमा की बढ़त का संकेत मिलता है. विपक्षी दलों के साथ-साथ उनकी मूल पार्टी के अधिकतर सांसदों का उन्हें समर्थन है.
एसएलपीपी के अध्यक्ष जी एल पीरिस ने मंगलवार को कहा कि सत्तारूढ़ श्रीलंका पोदुजाना पेरामुना (एसएलपीपी) पार्टी के अधिकतर सदस्य इससे अलग हुए गुट के नेता अल्हाप्पेरुमा को राष्ट्रपति पद के लिए और प्रमुख विपक्षी नेता सजित प्रेमदासा को प्रधानमंत्री पद के लिए चुने जाने के पक्ष में हैं.
हालांकि यहां के विश्लेषकों का मानना है कि 73 वर्षीय विक्रमसिंघे आगे चल रहे हैं. सत्तारूढ़ एसएलपीपी के समर्थन के बिना, विक्रमसिंघे को सफलता नहीं मिलेगी क्योंकि उनके पास संसद में केवल उनकी सीट है.
मीडिया के अनुसार, अल्हाप्पेरुमा के पक्ष में एक अन्य घटनाक्रम में, श्रीलंका फ्रीडम पार्टी (एसएलएफपी) ने चुनाव में उन्हें वोट देने का फैसला किया है.
टीपीए नेता सांसद मनो गणेशन ने कहा कि तमिल प्रोग्रेसिव एलायंस (टीपीए) ने भी सर्वसम्मति से राष्ट्रपति चुनाव में अल्हाप्पेरुमा का समर्थन करने का फैसला किया है. श्रीलंका मुस्लिम कांग्रेस (एसएलएमसी) और ऑल सीलोन मक्कल कांग्रेस (एसीएमसी) ने भी अल्हाप्पेरुमा को वोट देने का फैसला किया है. दूसरी ओर, विक्रमसिंघे को लोकप्रिय ‘अरागलया’ सरकार विरोधी आंदोलन से समर्थन नहीं मिला.