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भारत के लिए खतरे की आहट! नेपाल ने विदेश नीति में किया बदलाव

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नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की दिसंबर के पहले हफ्ते में चीन यात्रा ने हिमालयन कंट्री की विदेश नीति में एक नया मोड़ ला दिया है. भारत और चीन के बीच संतुलन बनाने की नेपाल की कोशिशों के बीच, यह दौरा कई अहम समझौतों और उच्चस्तरीय चर्चाओं के लिए चर्चित रहा. हालांकि, इसे “प्रभावशाली पर कम परिणामदायक” कहा जा रहा है, जो चीन के साथ नेपाल के संबंधों की जटिलताओं और चुनौतियों को उजागर करता है.

प्रधानमंत्री ओली की यह यात्रा इस लिहाज से खास है कि उन्होंने भारत के बजाय चीन का दौरा पहले किया. यह कदम भारत के साथ तनावपूर्ण संबंधों और चीन के साथ सहयोग बढ़ाने की इच्छा को दर्शाता है. चीन के साथ नेपाल की बढ़ती इस नजदीकी ने भारत के पड़ोस में एक और कूटनीतिक संकट खड़ा कर दिया है.

नेपाल और चीन ने टोक्हा-छारे सुरंग परियोजना सहित कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए. यह परियोजना नेपाल और तिब्बत के बीच बेहतर कनेक्टिविटी प्रदान करेगी. इसके अलावा, चीन ने $41 मिलियन की आर्थिक सहायता और बसंतपुर दरबार पुनर्निर्माण परियोजना को पूरा करने का वादा किया.

नेपाल में चीन के निवेश को लेकर लोगों के मन में कई शंकाएं हैं. 2017 में नेपाल ने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का हिस्सा बनने के बाद कई परियोजनाएं शुरू कीं, लेकिन उनमें से अधिकांश अब तक अधूरी हैं. चीन की सख्त शर्तें और राजनीतिक असहमति इन परियोजनाओं के लिए बाधा बनी हुई हैं.

चीन के डेब्ट ट्रैप में फंसे श्रीलंका का आर्थिक संकट और पोखरा हवाई अड्डे जैसी परियोजनाओं के अनुभव ने नेपाल को चीन से कर्ज लेने में सावधानी बरतने पर मजबूर कर दिया है. नेपाल अब अनुदान आधारित परियोजनाओं को प्राथमिकता दे रहा है. तिब्बत-काठमांडू रेलवे जैसी महंगी परियोजनाएं, जिनकी लागत नेपाल की कुल अर्थव्यवस्था से भी अधिक है, नेपाल के लिए वित्तीय चुनौतियां बढ़ा रही हैं. जाहिर है चीन के डेब्ट ट्रैप में नेपाल अब और फंसना नहीं चाहता लेकिन संबंधों को साध कर भरपूर फायदा भी उठाना चाहता है.

बूढ़ी गंडक बांध परियोजना बार-बार रद्द होने और बढ़ती लागत के कारण यह विवाद का विषय बनी हुई है. वहीं, चीन की मदद से बनने वाला पोखरा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा पर्याप्त उड़ानें आकर्षित नहीं कर पाया है, जिससे इसे आर्थिक रूप से असफल माना जा रहा है.

नेपाल का चीन के साथ व्यापार घाटा चिंताजनक बना हुआ है. सीमित निर्यात और निवेश के कारण यह घाटा बढ़ रहा है. इसके अलावा, डिजिटल बुनियादी ढांचे में चीन की बढ़ती भागीदारी ने डेटा सुरक्षा और डिजिटल स्वतंत्रता पर सवाल खड़े कर दिए हैं.

चीन के साथ नजदीकी बढ़ाने से भारत के साथ नेपाल के संबंधों पर असर पड़ा है. नेपाल ने सार्वजनिक रूप से चीन की ताइवान और तिब्बत संबंधी नीतियों का समर्थन किया है, लेकिन सीमा विवाद और स्थानीय मीडिया की आलोचनाओं ने तनाव को बढ़ाया है. नेपाल की यह यात्रा उसकी कूटनीतिक प्राथमिकताओं में बदलाव को दर्शाती है. हालांकि, चीन से सहयोग बढ़ाने के बावजूद ठोस परिणामों की कमी और आर्थिक चुनौतियां सवाल खड़े करती हैं. नेपाल को भारत और चीन के बीच संतुलन बनाने के साथ-साथ आंतरिक स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए सतर्क और दूरदर्शी नीतियों की आवश्यकता है.

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