स्वयं उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी उनके स्वागत के लिए मौजूद हैं. डॉक्टरों की एक टीम भी टनल में स्टैंड-बॉय पर है. किसी भी प्रकार की आपात स्थिति से निपटने के लिए वो पूरी तरह से तैयार हैं.
सभी श्रमिक वापस बाहर आने वाले हैं लेकिन बड़ा सवाल यह है कि अब उनके साथ आगे क्या होगा? ऐसे कौन से प्रोटोकॉल हैं, जिन्हें पूरा किया जाना है? आइये हम आपको इनके बारे में बताते हैं.
एक अधिकारी ने कहा, ‘बचाव के बाद की देखभाल उतनी ही महत्वपूर्ण है जितना कि बचाव. मजदूरों को जल्द से जल्द अस्पताल पहुंचाया जाएगा. इसके लिए, उनके स्वास्थ्य और स्थिति के आधार पर हवाई और सड़क परिवहन की व्यवस्था की गई है. उन्हें चिकित्सकीय सुविधा मुहैया कराने के लिए घटनास्थल से 30 किलोमीटर दूर चिन्यालीसौड़ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में 41 बिस्तरों का अस्पताल तैयार किया गया है.’
अधिकारी ने कहा, ‘डॉक्टरों की एक टीम घटना स्थल पर है. 41 एम्बुलेंस हैं, प्रत्येक मजदूर के लिए एक, और अगर किसी को तत्काल अस्पताल में भर्ती करने की आवश्यकता हो तो दो हेलीकॉप्टर हैं. इसके अलावा, जरूरत पड़ने पर वायु सेना को भी शामिल किया जाएगा.’
अधिकारी ने कहा, किसी भी चिकित्सा आपात स्थिति के मामले में श्रमिकों को एयरलिफ्ट करने के लिए चिन्यालीसौड़ में एक चिनूक हेलीकॉप्टर भी तैनात किया गया है.
अधिकारी ने आगे कहा कि बंद जगह में इतने लंबे समय तक फंसे रहने के कारण श्रमिकों को मनोवैज्ञानिक आघात का भी सामना करना पड़ सकता है. ‘मनोचिकित्सक पिछले कुछ दिनों से श्रमिकों के संपर्क में हैं. बचाव के बाद उन्हें उचित परामर्श भी दिया जाएगा.’
अधिकारी ने बताया कि 17दिन तक अंधेरे में रहने के बाद बाहर आने वाले मजदूरों की आंखों पर बाहर की रौशनी का ज्यादा प्रभाव न पड़े, इसे देखते हुए उनके लिए काले चश्मे मंगवाए गए हैं. उन्हें कुछ समय तक चश्मे पहनने की सलाह दी गई है.
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