उत्‍तराखंड

उत्तराखंड: बांज की विलप्त हो रही प्रजातियों पर टूटी नींद,संरक्षण के प्रयास हुए शुरू

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बांज

दुनिया में बांज की कई प्रजातियां विलुप्ति की कगार पर हैं. बांज का महत्व समझते हुए वन विभाग ने इसकी प्रजातियों के संरक्षण के ठोस प्रयास शुरू कर दिए हैं.

द मॉर्टन अर्बोरटम और इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर के ग्लोबल ट्री स्पेशलिस्ट ग्रुप की ओर से जारी रिपोर्ट द रेड लिस्ट ऑफ ओक्स 2020 में दुनिया की 31 प्रतिशत बांज प्रजातियों को विलुप्ति के कगार पर बताया गया है.

रिपोर्ट में भारत में चार प्रजातियां संकटग्रस्त बताई गई है. हालांकि राज्य में बांज की किसी प्रजाति के विलुप्त होने के कगार पर पहुंचने की रिपोर्ट विभाग के पास नहीं है.

उत्तराखंड में पांच प्रकार का बांच पाया जाता है, जिनको संरक्षित किया जा रहा है. बांज को उत्तराखंड का हरा सोना कहा जाता है. चीड़ का जंगल खत्म कर बांज के जंगल बढ़ाने की मांग उठती रही है. वन विभाग के हल्द्वानी रिसर्च केंद्र ने रानीखेत में एक हेक्टेयर में बांच संरक्षण केन्द्र बनाया है,

उत्तराखंड में मिलती हैं बांज की पांच प्रजातियां 

उत्तराखंड में बांज की पांच प्रजातियां पाई जाती हैं. इनमें फलियांट (फनियांट, हरिन्ज बांच), बांज,  रियांज (सांज बांज), तिलन्ज ( मोरू, तिलोंज बांच), बरस (खरू बांच) पाया जाता है. ये प्रजातियां 12 सौ से 35 सौ मीटर तक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पाई जाती हैं.

बांज को नुकसान पहुंचाने वाले प्रमुख कारक
-बांज पेड़ों के बीच उगने वाली झुला घास अवैज्ञानिक ढंग से निकालना
-पालतु पशुओं के लिए बांच के पेड़ से गलत तरीके से पत्तियां छांटना 
-जंगल में आग लगने से बड़ा नुकसान 
-जंगलों के विकास कार्यों के इस्तेमाल
-अत्यधिक गर्मी और कम बारिश प्रभावित

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