कुमाऊं से हाईकोर्ट का शिफ्ट होने पर वकीलों, सामाजिक, राजनीतिक चिंतकों के साथ ही राज्य आंदोलनकारी भी मुखर हो गए हैं। उनका मुख्य आरोप है कि हाईकोर्ट का इस्तेमाल कुमाऊं और गढ़वाल के लोगों को अलग करने के लिए किया जा रहा है।
इससे पहले भी कई महत्वपूर्ण संस्थानों और निदेशालयों का स्थानांतरण हो चुका है और कुमाऊं को अपनी पहचान से वंचित किया जा रहा है। श्रम, सेवायोजन, और उच्च शिक्षा निदेशालयों के उच्चाधिकारी अब देहरादून में काम कर रहे हैं, जबकि एम्स गढ़वाल में स्थापित किया गया है। इस परिस्थिति में कुमाऊं का विकास अवरोधित हो सकता है।
पहाड़ों के विकास के लिए पहाड़ी राज्य का गठन किया गया था, लेकिन वर्तमान में कुमाऊं के लोग महसूस कर रहे हैं कि वे समाज के एक भाग से बाहर हो रहे हैं। राज्य आंदोलनकारियों का कहना है कि अगर इस तरह की उपेक्षा जारी रही तो कुमाऊं का प्रदेश के रूप में मांग करने की संभावना है।
रामनगर बार एसोसिएशन के अधिवक्ताओं की मांग है कि हाईकोर्ट की एक बेंच ऋषिकेश में स्थापित करने के बजाय रामनगर में ही इसे स्थापित किया जाए। मंगलवार को रामनगर में न्यायालय परिसर के गेट पर बार एसोसिएशन के अध्यक्ष ललित मोहन तिवारी और सचिव संतोष देवरानी के नेतृत्व में अधिवक्ताओं ने प्रदर्शन किया। उन्होंने हाईकोर्ट को रामनगर में स्थापित करने की मांग किया और इस मांग का समर्थन करते हुए काली पट्टी बांधकर धरना प्रदर्शन किया। अधिवक्ताओं का कहना है कि रामनगर गढ़वाल और कुमाऊं के बीच स्थित होने के कारण यहां हाईकोर्ट की स्थापना विशेष महत्वपूर्ण है, ताकि इस क्षेत्र के लोगों को न्याय उपलब्ध हो सके।