लाल सोने के नाम से मशहूर केसर जल्द ही हिमालयी क्षेत्र के गांवों में अपनी खुशबू बिखेरने लगेगा.
विकेंद्रीकृत जलागम परियोजना (ग्राम्या) के सहयोग से बागेश्वर जिले के कपकोट विकासखंड के लीती और खलझूनी में केसर की खेती की शुरुआत की गई है.
अगले साल मार्च-अप्रैल में केसर की पहली फसल मिलने की उम्मीद है.
दूसरी ओर, अल्मोड़ा जिले के रानीखेत में भी उद्यान विभाग ने केसर का ट्रायल शुरू कर दिया है.
केसर का वैज्ञानिक नाम क्रोकस सैटाइवस है. इसकी पैदावार ठंडे इलाकों में होती है. कश्मीर के साथ ही देश के कई क्षेत्रों में केसर उत्पादन से किसान आत्मनिर्भर बन गए हैं.
इसे देखते हुए सीमांत में जलागम के कार्य में जुटी ग्राम्या के अधिकारियों ने किसानों को केसर की खेती के जरिये आत्मनिर्भर बनाने की योजना बनाई है.
पहले चरण में लीती के एक और खलझूनी के दो किसानों के खेतों में सितंबर के अंत में प्रयोग के तौर पर केसर के बल्बों (बीज) का रोपण किया.
बल्ब ग्राम्या की ओर से उपलब्ध कराए गए हैं.
हिमालयी क्षेत्र के लीती के साथ ही खलझूनी में केसर के बल्बों ने पौधों का आकार ले लिया है.
लीती में केसर की खेती कर रहे गोविंद सिंह कोरंगा शुरुआती लक्षणों से खुश हैं।
कोरंगा ने डेढ़ नाली के खेत में करीब 30 किलो केसर के बल्ब लगाए हैं. केसर की खेती छह माह में तैयार हो जाती है.