हरिद्वार| क्रिकेटर ऋषभ पंत को उत्तराखंड के रुड़की में हुए बेहद घातक दुर्घटना के पांच दिन बाद बुधवार को मुंबई लाया गया. पंत का जिस अस्पताल में इलाज चल रहा था वहां से जुड़े सूत्रों ने बताया कि उनकी हालत में ‘अच्छा’ सुधार हुआ है. हालांकि, उनके पैर में हुआ लिगामेंट टियर चिंता का विषय बना हुआ है, जिसे ठीक होने में ‘ज्यादा वक्त’ लग सकता है.
इस लिगामेंट टियर के इलाज के लिए ऋषभ पंत को मुंबई ले जाया गया है, लेकिन एक बड़ा सवाल अब भी बना हुआ है कि क्या दुर्घटना लापरवाही से कार चलाने के कारण हुई या उन्हें झपकी आ गई थी. हादसे के एक दिन बाद सामने आई सड़क पर गड्ढे वाली थ्योरी को भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) के एक अधिकारी ने भी खारिज कर दिया है. एनएचएआई (रुड़की डिवीजन) के परियोजना निदेशक पीएस गुसाईं के हवाले से बताया गया है कि दुर्घटनास्थल पर कोई गड्ढा नहीं था.
दरअसल दिल्ली एंड डिस्ट्रिक्ट क्रिकेट एसोसिएशन (डीडीसीए) के निदेशक श्याम शर्मा ने देहरादून के मैक्स अस्पताल में ऋषभ पंत से मुलाकात के बाद सड़क पर गड्ढा होने की बात कही थी. उन्होंने मीडियाकर्मियों को बताया कि सड़क पर बने गड्ढे से बचने की कोशिश में ऋषभ पंत की कार दुर्घटनाग्रस्त हुई.
वहीं रुड़की में ऋषभ पंत को अस्पताल ले जाने वाले पुलिसवालों ने शुरुआत में कहा था कि उन्हें कार चलाने के दौरान पंत को झपकी आ गई और उस वक्त वह ‘शायद बहुत तेज कार चला रहे थे.’
दरअसल, परिवहन विभाग का रिकॉर्ड बताता है कि आग के गोले में तब्दील हुई पंत की मर्सिडीज बेंज का पिछले साल फरवरी में उत्तर प्रदेश में ‘ओवर स्पीडिंग’ के लिए चालान किया गया था.
वहीं टक्कर के बाद धमाके की आवाज़ सुनकर वहां पहुंचे चश्मदीद परमिंदर ने मीडिया को बताया, ‘ऐसा लगता है कि कार बहुत तेज गति से जा रही थी’. वहीं हादसे के वक्त के एक सीसीटीवी फुटेज को भी देखकर भी यही प्रतीत होता है कि पंत की कार ‘सामान्य’ से ज्यादा तेज रफ्तार चल रही थी.
हालांकि रविवार को वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (हरिद्वार) अजय सिंह के बयान ने एक नया मोड़ दे दिया. उन्होंने कहा, ‘हमने कैमरों की जांच की है, वाहन 60-80 किलोमीटर प्रति घंटे की सामान्य गति से चल रहा था.’
यहां दिलचस्प बात यह भी है कि हरिद्वार के शीर्ष पुलिस अधिकारी जब यह बात बता रहे थे, तब कोई पुलिस अधिकारी यह बताने को तैयार नहीं था कि क्या नशे की जांच के लिए पंत का ब्लड अल्कोहल टेस्ट किया गया था या नहीं. आम तौर पर सड़क हादसे के मामलों में 12 घंटे के भीतर ही यह टेस्ट कर ली जाती है ताकि यह पता लगाया जा सके कि गाड़ी चला रहा व्यक्ति शराब आदि के नशे में तो नहीं था.
दूसरी तरफ, दुर्घटनास्थल के पास ही रहने वाले स्थानीय लोगों ने हाईवे के संकरे हिस्से की ओर ध्यान दिलाया, जो अक्सर ही दुर्घटनाओं का कारण बनता है. वहीं इस बारे में एनएचएआई के तकनीकी प्रबंधक राघव त्रिपाठी ने कहा कि ‘एक नहर के यह बाधा उत्पन्न कर रही है.
उन्होंने कहा, ‘हम अपने खर्च पर नहर को वहां से दूर ले जाना चाहते थे, लेकिन सिंचाई विभाग ने अनुमति देने से इनकार कर दिया. हालांकि सिंचाई विभाग के अधीक्षण अभियंता वीके मौर्य ने इस आरोप को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि ‘हमें ऐसा कोई पत्र नहीं मिला है’.