उत्‍तराखंड

छावला मामला: दोषियों को रिहा करने के फैसले के खिलाफ सुप्रीमकोर्ट में दायर होगी रिव्यू पिटीशन, एलजी ने दी मंजूरी

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सुप्रीमकोर्ट

दिल्ली| छावला गैंगरेप और हत्या मामले में दोषियों को रिहा करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले से खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल की जाएगी. दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने इसकी मंजूरी दे दी है.

गृह विभाग के सूत्रों के मुताबिक मामले में पक्ष रखने के लिए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और अतिरिक्त एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी की नियुक्ति को भी मंजूरी दे दी है. बता दें कि इस मामले में निचली अदालत और दिल्ली हाईकोर्ट ने फांसी की सुजा सुनाई थी जिसे सुप्रीम कोर्ट ने बदलते हुए तीनों दोषियों को बरी कर दिया था.

मामला करीब 10 साल पुराना है. फरवरी 2012 में छावला की रहने वाली 19 साल की युवती गुड़गांव से काम खत्म कर बस से घर वापस लौट रही थी. जैसे ही वह बस से उतर घर की ओर पैदल जाने लगी तो लाल रंग की एक कार में सवार तीन लड़कों ने उसे जबरन गाड़ी में खींच लिया.

तीनों ने उसके साथ रेप किया और दरिंदगी भी की. लड़कों ने उसके शरीर हो कई जगह दांतों से काटा. इतनी ही नहीं उसके सिर पर गाड़ी के जैक से कई वार किए. लड़कों ने उसे शव की पहचान छुपाने के लिए गाड़ी से सााइलेंसर और दूसरे औजारों से जगह-जगह शरीर को दाग दिया.

लड़की के प्राइवेट पार्ट को भी जलाने की कोशिश की गई. इसके बाद उसके प्राइवेट पार्ट में टूटी हुई बोतल घुसा दी. लड़कों की दरिंदगी यहां ही खत्म नहीं हुई. उन्होंने लड़की की आंखें फोड़कर उसमें कार की बैटरी का तेजाब भर दिया.

इस मामले में रवि कुमार, राहुल और विनोद को आरोपी बनाया गया था. 2014 में निचली अदालत ने रवि, राहुल और विनोद को दोषी पाया और उन्हें फांसी की सजा सुनाई.

इसी साल अगस्त में हाईकोर्ट ने भी फांसी की सजा को बरकरार रखा था. आरोपियों पर तल्ख टिप्पणी करते हुए हाईकोर्ट ने कहा था कि ये वो हिंसक जानवर हैं, जो सड़कों पर शिकार ढूंढते हैं.

अब सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट और निचली अदालत के फैसले को पलट दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में पुलिस की लापरवाही का जिक्र किया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बचाव पक्ष की दलील थी गवाहों ने भी आरोपियों की पहचान नहीं की.

कुल 49 गवाहों में दस का क्रॉस एग्जामिनेशन नहीं कराया गया. आरोपियों की पहचान के लिए कोई परेड नहीं कराई गई. इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि निचली अदालत ने भी प्रक्रिया का पालन नहीं किया.

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