देहरादून| उत्तराखंड में हाल ही में बच्चों के साथ छेड़खानी करने समेत विभिन्न शिकायतों के कारण चर्चाओं में आए पांच मदरसों पर सरकार बुलडोजर चला चुकी है. सीएम पुष्कर सिंह धामी पहले ही ऐलान कर चुके हैं कि अवैध मदरसों को बंद किया जाएगा, बावजूद इसके अभी भी सात सौ से अधिक मदरसे संचालित हो रहे हैं, जिनका रिकॉर्ड खुद मदरसा शिक्षा परिषद के पास भी नहीं है.
इस बीच बड़ा खुलासा हुआ है कि नैनीताल, हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर में चल रहे 30 मदरसों में 750 गैर मुस्लिम बच्चे भी तालीम (शिक्षा) ले रहे हैं.
हालांकि, मदरसा शिक्षा परिषद के चेयरमैन मुप्ती शमून कासमी का दावा है कि इन मदरसों में एनसीईआरटी का सिलेबस पढ़ाया जा रहा है. यहां दीनी तालीम मुस्लिम बच्चों को अलग से दी जाती है. लेकिन, मुफ्ती शमून कासमी की बात पर विश्वास नहीं किया जा सकता, क्योंकि मदरसा शिक्षा परिषद इन मदरसों को कोई खर्च नहीं देता. सरकार में सबद्ध नहीं हैं, तो सरकार भी इनको एड नहीं देती. ऐसे में सवाल उठता है कि इन मदरसों को फंडिंग कहां से मिल रही है? टीचरों की सैलरी कहां से आ रही है?
अब इस मामले पर सियासत भी शुरू हो गई है. कांग्रेस पूरे मामले को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े कर रही है. कांग्रेस प्रदेश संगठन मंत्री मथुरा दत्त जोशी का कहना है कि सरकार बच्चों को स्कूल उपलब्ध नहीं करा पा रही है, इसलिए हिंदू बच्चे मदरसों में दीनी तालिम ले रहे हैं.
दूसरी ओर बीजेपी से भी कुछ बोलते नहीं बन रहा है. बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता वीरेंद्र बिष्ट का कहना है कि सरकार पूरे मामले पर एक्शन ले रही है. कांग्रेस ने अपने कार्यकाल में तो मदरसों को खूब पाला पोसा है.
जानकार कहते हैं कि गंभीरता से जांच हुई तो मदरसों की तादादा और इनमें पढ़ने वाले गैर मुस्लिम बच्चों की संख्या कहीं अधिक हो सकती है. मामले का राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग ने भी संज्ञान लिया है. आयोग ने इसे बच्चों के मौलिक अधिकारों का हनन बताते हुए गंभीर चिंता जताई है. आयोग का कहना है कि आरटीई के तहत इन बच्चों को स्कूलों में एडमिशन क्यों नहीं दिलाया गया ? आयोग के चेयरपर्सन प्रियंक कानूनगो ने इसे गंभीर लापरवाही बताते हुए माइनॉरटी डिपार्टमेंट के प्रमुख सचिव को इसी गुरूवार को अपनी कोर्ट में तलब किया है.