उत्‍तराखंड

तुर्की जैसा भयावह भूकंप आया तो पलक झपकते ही जमींदोंज हो जाएगा उत्तराखंड का ये शहर! जानिए कारण

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सांकेतिक फोटो

पिथौरागढ़| उत्तराखंड का बॉर्डर जिला पिथौरागढ़ भू-गर्भीय हलचलों को लेकर जाना जाता है. यहां शायद ही कोई हफ्ता ऐसा गुजरा हो, जब बॉर्डर की धरती नहीं डोली हो. प्राकृतिक नजरिए से अतिसंवेदनशील पिथौरागढ़ को जो फाइव में है. एनजीआरआई ने जब तुर्की जैसा भयावह भूकंप उत्तराखंड में आने की आशंका जताई है तो, भूकंप का खौफ यहां के लोगों में और अधिक बढ़ गया है. चीन और नेपाल बॉर्डर पर बसा पिथौरागढ़ भूकंप के लिहाज के सबसे अधिक संवेदनशील है.

यहां की धरती अक्सर कम तीव्रता के भूकंप से डोलती रहती है. जानकारों की मानें तो यहां चौबीस घंटें के भीतर दो हजार से ज्यादा भूकंप के झटके आते हैं लेकिन इन झटकों की तीव्रता इतनी कम होती है कि ये महसूस नहीं होते हैं. असल में इस इलाके में इंडियन प्लेट लगातार एशियाई प्लेट की तरफ खिसक रही है, जिस कारण अक्सर यहां भूकंप के झटके महसूस होते हैं. बीते कुछ समय में यहां भूकंप आने की घटनाओं की लगातार इजाफा हुआ है, जिस कारण लोगों में भारी दहशत भी बनी हुई है.

मुनस्यारी तहसील के रहने वाले जीवन दानू का कहना है कि उनके इलाके में भूकंप को लेकर हर वक्त डर बना रहता है, ऐसे में जब एनजीआरआई ने चेतावनी दी है तो उनका डर और अधिक बढ़ गया है, वहीं स्थानीय निवासी जगदीश कुमार का कहना है कि सरकार आपदा प्रबंधन तंत्र मजबूत करे ताकि भूकंप आने पर लोगों को तत्काल राहत मिल सके.

धारचूला और मुनस्यारी हैं सबसे अधिक खतरे में
यहां धारचूला और मुनस्यारी सबसे अधिक खतरे की जद में है. यही नही अगर भूकंप का तेज झटका आया तो जिला मुख्यालय को भी खासा नुकसान हो सकता है। असल में यहां मुख्यालय पूरी तरह कंक्रीट के जंगल में तब्दील हो गया है। गगनचुंबी इमारतें धरती के डोलने पर भारी आफत को दावत दे सकती हैं। यही नही यहां बहुमंजिला इमारतें पूरी तरह सट कर बनी हैं। जो नुकसान में और अधिक इजाफा कर सकती हैं। जो फाइव में होने के कारण यहां प्रशासन ने कुछ हद तक खुद को तैयार भी किया है।

जोन फाइव में है शहर
पिथौरागढ़ भले ही जोन फाइव में हो, लेकिन अभी तक यहां भूकंप के झटके ऐसे नही आए हैं, जो तबाही मचा सकें। जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी भूपेन्द्र महर ने बताया कि प्रशासन की टीमें हर तहसील के साथ ही थाना स्तर पर भी एक्टिव हैं। यहीं नही महिला और युवा मंगल दलों को भी आपदा प्रबंधन का प्रशिक्षण दिया गया है, साथ ही लोगों को भूकंपरोधी तकनीक से मकान बनाने के बारे में बताया जा रहा है.

धरती डोली तो
असल भूकंप में आने पर उतना नुकसान नहीं होता है, जितना नुकसान इंसान की बनाई गईं इमारतें उसे पहुंचाती हैं. ऐसे में जब एनजीआरआई ने उत्तराखंड में भयंकर भूकंप की आशंका जताई है तो बेहतर यही होगी कि भवनों को पूरी तरह भूकंपरोधी तकनीक पर बनाया जाए, ताकि धरती के डोलने पर इंसानी जिंदगी को नुकसान कम से कम हो.

साभार-न्यूज़ 18

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