उत्‍तराखंड

पिरूल आग का कारण नहीं बल्कि बन सकती है आजीविका का साधन, IIT वैज्ञानिकों ने तैयार की मशीन

Advertisement

आईआईटी के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित एक नई मशीन अब जंगलों में आग का मुख्य कारण बनने वाली चीड़ की पत्तियों (पिरूल) को आजीविका का साधन बना सकती है। यह मशीन पिरूल को कंप्रेस कर ईंटों में बदलने की क्षमता रखती है, जिससे यह बेहद सस्ती दरों पर तैयार की जा सकती है। इस तकनीक से न केवल वन क्षेत्रों में आग के जोखिम को कम किया जा सकेगा, बल्कि स्थानीय लोगों को आर्थिक लाभ भी मिलेगा।

अब, पिरूल को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाकर बेचने और ईंधन के रूप में उपयोग करने में आसानी हो गई है। उत्तराखंड के दो गांवों में सफल प्रयोग के बाद, अब इसे जम्मू-कश्मीर के जंगलों में भी आजमाया जा रहा है। यहाँ पिरूल ग्रामीणों की आजीविका का एक महत्वपूर्ण साधन बनता जा रहा है।

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने ग्रामीणों को जंगल से पिरूल एकत्रित करने और इसे बेचने के लिए प्रोत्साहित किया है। इसके लिए एक एप की योजना भी बनाई गई है, जिससे पिरूल खरीदने का काम किया जा सके और ग्रामीणों को तत्काल भुगतान उनके खातों में मिल सके। हालांकि, पिरूल इकट्ठा करना और इसे बाजार तक पहुँचाना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है।

आईआईटी के डिपार्टमेंट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज के वैज्ञानिक डॉ. विनय शर्मा और डॉ. रजत अग्रवाल ने लगभग 12 साल पहले एक मशीन तैयार करने पर काम शुरू किया था। 2019 में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने उन्हें एक महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट सौंपा, जिसके तहत पिरूल को कंप्रेस्ड कर ईंटों में परिवर्तित करने की मशीन बनाई गई।

इस मशीन का ट्रायल उत्तराखंड के काठगोदाम से ऊपर चौपड़ा गांव और भवाली नैनीताल के पास श्यामखेत गांव में 6-6 मशीनें लगाकर किया गया जो सफल रहा। इसके बाद, 2022 में जम्मू-कश्मीर वन विभाग की मांग पर 12 मशीनें भेजी गईं, जो अब लोगों की आजीविका का जरिया बन चुकी हैं। आईआईटी ने इस शोध का पेटेंट भी करा लिया है, जिससे इस नवाचार को सुरक्षा और मान्यता मिली है।

Exit mobile version