क्या जोशीमठ एक टाइम बम पर बैठा है, जिसका तबाह होना तय! एक्सपर्ट क्यों कह रहे ऐसा-जानिए

पहाड़ एक बार फिर ‘प्राकृतिक और मानवजनित’ आपदा का शिकार हो रहा है? आखिर देवभूमि का जोशीमठ किनके कर्मों की सजा भुगत रहा है. यहां बात हो रही है. उत्तराखंड के चमोली जिला स्थित जोशीमठ की, जहां भू धंसाव के कारण तमाम मकानों में दरारें पड़ चुकी है. और जहां-तहां से पानी की क्षीर (सोते) फूट रहे हैं. शुक्रवार को एक मंदिर, जिसमें पिछले काफी दिनों से गहरी और मोटी दरारें पड़ी हुई थीं, वह गिर गया.

जोशीमठ के मुख्य पोस्ट ऑफिस को दरारों के चलते वहां से दूसरी जगह शिफ्ट कर दिया गया है. देहरादून से एक टीम वहां हालात का जायजा लेने भी पहुंची थी. शनिवार 7 जनवरी को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी यहां का दौरा किया. हालात भयावह हैं, अभी कोई भले ही कुछ न कह रहा हो, लेकिन एक्सपर्ट्स का मानना है कि जोशीमठ एक टाइम बम पर बैठा है, जिसका तबाह होना तय है.

जोशीमठ को लेकर जितनी डराने वाली खबरें आप देख और सुन रहे हैं, उससे भी भयानक सत्य ये है कि जोशीमठ का ज्यादातर हिस्सा बहुत लंबे समय तक नहीं बचेगा. इस शहर का ज्यादातर हिस्सा तबाह हो जाएगा. फिलहाल जोशीमठ को कोई भी ताकत नहीं बचा सकती. इसलिए अब कोई रिपोर्ट या साइंस काम नहीं करेगी, बल्कि अब हमारा प्रमुख लक्ष्य यहां रह रहे लोगों की जान बचाना होना चाहिए. जोशीमठ में पहले जमीन धंसने की रफ्तार कम थी, लेकिन अब यह प्रक्रिया काफी तेज हो चुकी है. इसलिए हो सकता है कि किसी दिन आपको अचानक खबर मिले कि वहां किसी इलाके में 50-60 घर एक साथ ढह गए हैं.

इसलिए अभी हमारा प्रमुख लक्ष्य वहां से लोगों को बचाकर किसी सुरक्षित जगह पर लेकर जाना होना चाहिए. जोशीमठ के ज्यादातर हिस्से को आप अब किसी भी हालात में बचा नहीं पाएंगे. अगले 1-2 साल तक यहां जमीन धंसाव की प्रक्रिया तेज भी होगी और जारी रहेगी. यह सब हम नहीं कर रहे, बल्कि यह कहना है डिपार्टमेंट ऑफ फॉरेस्ट्री, रानीचौरी (टिहरी) के एचओडी और जियोलॉजिस्ट डॉ. एसपी सती का.

ये है जोशीमठ की तबाही का इतिहासिक प्रमाण
जोशीमठ के बारे में कहा जाता है कि यह शहर मोरेन पर बसा है बता दें कि मोरेन ग्लेशियर के मलवे के जमाव से बनते हैं. लेकिन डॉ. सती का कहना है कि जोशीमठ मोरेन पर नहीं बल्कि लैंडस्लाइड मटेरियल पर बसा है. उन्होंने 1939 में छपी पुस्तक सेंट्रल हिमालय का जिक्र किया और बताया कि इस किताब में प्रोफेसर हेम और प्रोफेसर ग्रांडसन (स्विस जियोलॉजिस्ट) ने यहां रिसर्च के बाद लिखा था कि जोशीमठ एक लैंडस्लाइड मटेरियल पर बसा है. उन्होंने ऐतिहासक तथ्य का जिक्र करते हुए बताया कि 1000 साल पहले भी यहां लैंडस्लाइड की वजह से तत्कालीन जोशीमठ गांव या कस्बा तबाह हो चुका है और उस समय यहां के कत्यूर राजाओं को अपनी राजधानी दूसरी जगह शिफ्ट करनी पड़ी थी. इसके अलावा 1976 में जोशीमठ में भूस्खलन की कई घटनाएं हुई थीं. उस समय उत्तर प्रदेश सरकार ने गढ़वाल कमिश्ननर महेश चंद्र मिश्रा की अध्यक्षता में एक कमेटी का निर्माण किया और इस कमेटी ने एक रिपोर्ट बनाई. इस रिपोर्ट में कहा गया था कि यहां पर कंस्ट्रक्शन के कार्य पर रोक लगाई जानी चाहिए. यहां जमीन में जो बड़े-बड़े पत्थर (बोल्डर) हैं उन्हें बिल्कुल भी नहीं छेड़ना चाहिए.

क्यों तबाही की कगार पर है जोशीमठ?
सरकार ने और आम लोगों ने भी मिश्रा कमेटी की रिपोर्ट को दरकिनार किया और यहां बड़े-बड़े कंस्ट्रक्शन किए गए. आईटीबीपी और सेना की बटालियनों के लिए निर्माण हुए, साथ ही बदरीनाथ, हेमकुंड साहिब मार्ग का मुख्य शहर होने की वजह से यहां बड़े-बड़े होटल भी बन गए. लेकिन यहां ड्रेनेज की कोई व्यवस्था नहीं है. घरों और होटलों का पानी यहीं जमीन में रिसता रहता है. पहाड़ों में हो रहे अनियंत्रित निर्माण और सड़क परियोजनाओं की वजह से प्रकृति को ऐसा नुकसान पहुंचा है, जिसे वापस ठीक नहीं किया जा सकता. डॉ. सती का कहना है, ‘जोशीमठ में जो हो रहा है, वह देर-सबेर होना ही था.’ वह तो जोशीमठ को टाइम बम करार देते हैं. डॉ. सती कहते हैं 2013 की आपदा के बाद यहां ज्यादा कुछ नहीं हुआ, लेकिन फरवरी 2021 में आई ऋषिगंगा आपदा के बाद जोशीमठ और आसपास के इलाकों में जमीन धंसने की रफ्तार तेज हो गई है. जिसकी वजह से आज जोशीमठ में हर तरफ दरारें दिख रही हैं और जगह-जगह जलस्रोत फूटे हुए हैं.

डिजास्टर मिटिगेशन एंड मैनेजमेंट सेंटर (DMMC) देहरादून के एग्जक्यूटिव डायरेक्टर पीयूष रौतेला से भी हमने इस संबंध में बात की. उन्होंने बताया कि यहां पानी की ही समस्या है. यहां घरों और होटलों का पानी जमीन के अंदर जा रहा है और ड्रेनेज सिस्टम ठीक नहीं होने की वजह से जमीन धंस रही है. हालांकि, रौतेला जी का कहना है कि विष्णुगाड़ परियोजना की वजह से नुकसान की जो बातें कही जा रही हैं, वह बेबुनियाद हैं. उन्होंने कहा कि जोशीमठ शहर लैंडस्लाइड मैटेरियल पर बसा है, यहा मैटेरियल इतना लोड नहीं ले सकता है. जबकि हमारे पूर्वज बहुत स्मार्ट थे, वह पक्की जमीन पर रहते थे और लैंडस्लाइड मैटेरियल पर खेती करते थे. आज हम इसी जमीन पर 5-7 मंजिला भवन बना रहे हैं, जबकि इसकी लोड लेने की कैपेसिटी इतनी है ही नहीं.

14 साल से सुरंग में फंसी है टनल बोरिंग मशीन
तपोवन परियोजना के तहत साल 2009 में यहां टनल बनाने के दौरान एक टनल बोरिंग मशीन यहां फंस गई थी. इस बोरिंग मशीन की वजह से वहां 250 क्यूसेक पानी का जलस्रोत पंक्चर हो गया था. इस समय जोशीमठ में जगह-जगह से जो पानी निकल रहा है, उसकी वजह यही घटना भी हो सकती है. अगर जमीन से पानी निकल जाएगा तो पानी निकलने के कारण जो जगह खाली होगी, उसमें मिट्टी घंस सकती है, जो अभी जोशीमठ में भी हो सकता है. क्योंकि तपोवन परिजोना की टनल पूरी नहीं हुई और इसकी वजह से उस टनल में जो पानी है वह भी जमीन की दरारों में घुसकर भूधंसाव को बढ़ावा दे सकता है.

डॉ. सती ने एक कमेटी का सदस्य होते हुए जोशीमठ में जो जांच की थी, उसकी रिपोर्ट यही थी कि वहां पर मिश्रा कमेटी अनुशंसाओं की अवहेलना करते हुए अनियंत्रित निर्माण हुआ है. रिपोर्ट में कहा गया कि जोशीमठ में ड्रेनेज का मैनेजमेंट बहुत खराब है और जोशीमठ के नीचे बहने वाली अलकनंदा भी कटाव कर रही है. इसके अलावा यहां बिछे सड़कों के जाल को भी रिपोर्ट में जोशीमठ के हालात के लिए संभावित कारण माना गया है.

भूकंप भी हैं वजह ?
क्या जोशीमठ के हालात के लिए भूगर्भीय हलचलें या भूकंप हो सकते हैं? इस प्रश्न के जवाब में डॉ. सती ने कहा कि तत्काल तो कोई भूगर्भीय हलचल इसका कारण नहीं है. बता दें कि इस इलाके में साल 1999 में बड़ा भूकंप आया था. इसके अलावा छोटे-छोटे भूकंप आते रहते हैं, जिसकी वजह से जमीन के अंदर की दरारें बड़ी होती जाती हैं और उनमें पानी भर जाता है. इनकी वजह से सीपेज होती है और फिर इन्हीं दरारों के आसपास जमीन धंसती है.

इन शहरों का भी हाल जोशीमठ जैसा होगा
डॉ. सती के अनुसार जोशीमठ जैसा ही हाल देर-सबेर इन शहरों या गांवों का भी होगा. वह कहते हैं कि यह गांव या शहर टाइम बम पर बैठे हैं, यहां तबाही होना तय है. इनमें से वह कुछ नाम बताते हैं – भटवाड़ी, धारचूला, मुनस्यारी, गोपेश्वर, कर्णप्रयाग, पौड़ी, थराली, नैनीताल, धर्मशाला (हिमाचल) और सैकड़ों गांव इस लिस्ट में हैं. वह बताते हैं कि नैनीताल, गोपेश्वर, धारचुला, मुनस्यारी, अगस्त्यमुनी, पौड़ी आदि में आपको भविष्य की इस तबाही के निशान कई बार दिखे भी हैं. भटवाड़ी के बारे में वह कहते हैं कि यहां तो पूरा पहाड़ ही नीचे की ओर आ रहा है.



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