घोड़ाखाल गोलू देवता मंदिर में वैसे तो वर्ष भर भक्त पूजा पाठ के लिए आते है, लेकिन नवरात्रि में वहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु पूजा करने पहुंचते हैं. उत्तराखंड में, इन्हे “गोलू देवता”, “गोलजू महाराज” और न्याय देवता के रूप में पूजा जाता है. घोड़ाखाल मंदिर नैनीताल जिले के भवाली से लगभग पाँच किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. “घोड़ाखाल” का शाब्दिक अर्थ है “घोड़ों के लिए पानी का तालाब”.
घोड़ाखाल, एक छोटा सा गाँव एक सुंदर पहाड़ी क्षेत्र है, जो मुख्य रूप से भगवान गोलू के मंदिर के लिए जाना जाता है,
जिसे पहाड़ी लोग पूजा करते हैं. घोड़ाखाल मंदिर समुद्र तल से 2000 मीटर की ऊँचाई पर स्थित आकर्षक क्षेत्र. इसे “घंटियों के मंदिर” के रूप में भी जाना जाता है. गोलू देवता का मंदिर भव्य और आकर्षक है.
ये है गोलू देवता की कथा-:
गोलू देवता की कहानी कई रहस्यों से भरी हुई है. कुमाऊं क्षेत्र के चंपावत के कत्यूरी राजा झलराई की सात रानियां थी. किसी भी रानी से कोई संतान नहीं थी तब राजा ने संतान पाने के लिए अनेक देवताओं की पूजा दान किए.
राजा ने कई सारे उपाय किए लेकिन, कोई भी फल नहीं मिला. इसके बाद वे पंडित और ज्योतिषियों के शरण में गए. उन्होंने राजा की जन्म कुंडली देखकर बताया की वे आठवा विग्रह करे तो उन्हें पुत्र की प्राप्ति होगी.
राजा झलराई ने आधी रात को सपना में नीलकंठ पर्वत पर बैठे कलिंका नामक सुन्दर कन्या को देखा और दूसरे दिन यह बात सभी दरबारियों को बताते अपनी सेना के साथ नीलकंठ पर्वत की ओर चल दिए. काफी वर्षों बाद उन्हें तपस्या में लीन कलिंका मिली.
राजा झलराई ने अपना परिचय कलिंका को बताया और कहा सात रानियां होने के बावजूद मेरी कोई संतान नहीं है और कलिंका से अपनी आठवी रानी बनने का निवेदन किया.
कलिंका ने राजा को सलाह दी की वे साधु के पास जाकर शादी की अनुमति मांगे. राजा साधु के पास जाकर पीड़ा सुनाते है और साधु ने राजा की पीड़ा सुनकर विवाह की अनुमति दे दी.
रानी कलिंका से राजा को संतान हुई तो दूसरी रानियों ने जलन के कारण बच्चे की जगह पर खून से सना सिल बट्टा(एक प्रकार का बड़ा पत्थर) रख दिया और बच्चे को खतरनाक गायों के गोशाला में फेंक दिया.
बालक गोलू गायों का दूध पीकर बड़ने लगा और रानी से कहा की तेरे गर्भ से यह सिल बट्टे पैदा हुए है जिस कारण रानी काफी दुखी हुई. रानियों ने गोशाला जाकर देखा की नवजात बालक सुरक्षित है. उन्होंने उसे बिच्छु घास की झाड़ियो में फेंक दिया.
जब सारी चाल नाकामयाब रही अंत में उन्होंने बच्चे को एक टोकरी में रखा और दूर जंगल में छोड़ दिया. रानियों ने एक काठ के संदूक में बच्चे को रखा और काली नदी में फेंक दिया पर वह डूबा नहीं. संदूक सात दिन तक बहते -बहते आठवें दिन गोरीघाट में भाना मछुवारे के जाल में फंस गया.
मछुआरे ने संदूक खोलकर देखा उसमे हंसता खेलता बच्चा निकला. मछुआरे की कोई संतान नहीं थी, ऐसे में वह बच्चे को घर ले गया उसे पालने लगा. बच्चे का नाम गोलू रखा गया.
गोलू ने सपने में एक बार अपनी मां कलिंका और पिता झलराई को देखा और भाना को सारी बात बता दी. यह भी कहा की वे ही उसके असली मां -बाप हैं. उसने अपने मां-बाप से घोड़ा मांगा.
भाना ने एक लकड़ी(काठ) का घोड़ा बनाकर दे दिया. वह काठ के घोड़े पर घुमने लगा. एक बार वह अपने घोड़े को पानी पिलाने उस जगह ले गया जहां वे सातों रानियां नहाने के लिए आती थीं. रानियों ने उसके घोड़े को पानी न पिने दिया बालक गोलू ने रानियों के घड़े फोड़ दिए.
रानियों ने कहा ‘काठ का घोड़ा पानी कैसे पी सकता है. ‘गोलू ने उत्तर दिया, ‘जब एक औरत सिलबट्टे को जन्म दे सकती है तो काठ का घोड़ा कैसे पानी नहीं पी सकता है.’
रानियां यह बात सुनकर भयभीत हो गई. ये बात राजा के कानों तक पहुंची उसने गोलू को बुलाया और अपनी बात सिद्ध करने को कहा. गोलू ने अपनी माता कलिंका के साथ हुए अत्याचारों की सारी गाथा सुनाई.
राजा ने उसी समय गोलू को अपना पुत्र स्वीकार किया और सातों विमाताओ को प्राण दंड दे दिया. हालांकि, न्याय के देवता गोलू ने उन्हें क्षमादान देनी की अपील की. इसी कारण उन्हें न्याय का देवता कहा जाता है और उनका वाहन घोड़ा है.
घोड़ाखाल मंदिर की विशेषताएँ और मान्यताये :-
स्थानीय लोगों के अनुसार, घोड़ाखाल मंदिर में “गोलजू देवता” की स्थापना का श्रेय महरागाँव की एक महिला को माना जाता है. यह महिला वर्षो पूर्व अपने परिजनों द्वारा सतायी जाती थी. उसने चम्पावत अपने मायके जाकर गोल्जू देवता से न्याय हेतु साथ चले की प्राथना की .
इसी कारण गोल्ज्यू देवता उस महिला के साथ घोड़ाखाल मंदिर में विराजे .
घोड़ाखाल मंदिर की विशेषता यह है कि श्रद्धालु मंदिर में अपनी अपनी मन्नते कागज और पत्रों में लिखकर एक स्थान पर टांगते हैं और माना जाता है की गोल्ज्यू देवता उन मन्नतो में अपना न्याय देकर भगतो की पुकार सुनते है. और जब मन्नत पूरी होती है, तो लोग उपहार के रूप में “घंटियाँ” चढ़ाते हैं.
यहां ऐसी भी मान्यता है. अगर कोई नवविवाहित जोड़ा इस मंदिर में दर्शन के लिए आता है तो उनका रिश्ता सात जन्मों तक बना रहता है. उत्तराखंड के अल्मोड़ा और नैनीताल जिले के घोड़ाखाल मंदिर में स्थित गोलू देवता के मंदिर में एक पत्र भेजकर ही मुराद पूरी होती है.
यही नहीं, गोलू देवता लोगों को तुरंत न्याय दिलाने के लिए भी प्रसिद्ध हैं.