हरेला उत्तराखंड के कुमाऊं का एक प्रमुख त्यौहार है. यह त्यौहार सामाजिक सौहार्द के साथ ही कृषि और मौसम से भी संबंधित है. हरेला का अर्थ है हरियाली. इसके साथ ही हरेला पर्व को भगवान शिव के विवाह से जोड़कर भी देखा जाता है.
हरेला पर्व वैसे तो वर्ष में तीन बार आता है-
चैत्र मास में- चैत्र प्रतिदपा को हरेला बोया जाताहै और नवमी को काटा जाता है.
श्रावण मास में- सावन लगने से नौ दिन पहले यानी आषाढ़ माह में बोया जाता है और दस दिन बाद श्रावण के प्रथम दिन काटा जाता है.
आश्विन मास में- आश्विन मास में नवरात्र के पहले दिन बोया जाता है और दशहरा के दिन काटा जाता है.
इन तीनों हरेला पर्व में श्रावण मास में पड़ने वाले हरेला को ज्यादा महत्व मिला है क्योंकि सावन की फुहारों के साथ ही धरती हरी-भरी हो जाती है और सुख सम्पदा आती है. भारत कृषि प्रधान देश है ऐसे में अच्छी वर्षा और अच्छी कृषि की आस लिए हमारे कृषक हरेला पर्व मनाते हैं.
श्रावण मास में हरेला को ज्यादा महत्व देने की एक वजह इस माह का शंकर भगवान को विशेष प्रिय होना भी है. उत्तराखण्ड एक पहाड़ी प्रदेश है और पहाड़ों पर ही भगवान शंकर का वास माना जाता है. इसलिए भी उत्तराखण्ड में श्रावण मास में पड़ने वाले हरेला का अधिक महत्व मिला है.
हरेला बोने के लिए किसी थालीनुमा पात्र या टोकरी का चयन किया जाता है. इसमें मिट्टी डालकर गेहूं, जौ, धान, गहत, भट्ट, उड़द, सरसों आदि 5 या 7 प्रकार के बीजों को बो दिया जाता है. नौ दिनों तक इस पात्र में रोज सुबह को पानी छिड़कते रहते हैं. दसवें दिन इसे काटा जाता है. 4 से 6 इंच लम्बे इन पौधों को ही हरेला कहा जाता है. हरेला हाथों में लेकर घर की मुख्य स्त्री इसे परिवार के सभी सदस्यों के पैर से सिर तक लाती है और कान में या सिर पर रख देती है. इन लाइनों के साथ सभी को आशीष दी जाती है.
लाग हरेला लाग दसैं लाग बगवाल
जी रये जागि रये, धरती जतुक चाकव है जये,
अगासक तार है जये, स्यों कस तारण हो,
स्याव कस बुद्धि हो, दुब जस पंगुरिये,
सिल पिसि भात खाये, जांठि टेकि झाड़ जाये
अर्थात-हरियाला आपको मिले जीते रहो, जागरूक रहो, पृथ्वी के समान धैर्यवान, आकाश के समान विशाल बनो, सिंह के समान बलशाली, सियार के समान तेज़ बुद्धि हो, दूर्वा के समान पनपो, इतने दीर्घायु हो कि (दंतहीन होने के कारण) तुम्हें भात भी पीस कर खाना पड़े और शौच जाने के लिए भी लाठी का उपयोग करना पड़े.
कह सकते हैं कि घर में सुख-समृद्धि के प्रतीक के रूप में हरेला बोया व काटा जाता है. इसके मूल में यह मान्यता निहित है कि हरेला जितना बड़ा होगा उतनी ही फसल बढ़िया होगी. साथ ही प्रभु से फसल अच्छी होने की कामना भी की जाती है.
‘जी रये जागि रये’-जानिए कैसे मनाया जाता है उत्तराखंड का लोकपर्व हरेला
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