उत्तराखंड को देवभूमि यूं ही नहीं कहा जाता. यहां पग पग पर मन मोहने वाले दृश्य और सदियों पुराने मंदिर हैं जिनका धार्मिक ग्रंथों में भी जिक्र मिलता है, आज भी ये मंदिर तमाम आपदाओं के बाद सीना ताने खड़े देखने को मिल जाते हैं.
उत्तराखंड में धार्मिक पर्यटन तो है ही साथ ही साथ अपनी संस्कृति को नजदीक से देखने और जानने का भी मौका मिलता है. यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ तो चार धाम में गिने जाते हैं मगर इनके अलावा भी कई ऐसे मंदिर हैं जिनकी काफी मान्यता है और जहां दर्शन पूजन करने से मनुष्य जीवन धन्य हो जाता है.
ऐसा ही एक मंदिर है त्रियुगी नारायण मंदिर, जो केदारनाथ क्षेत्र में ही स्थित है. जगतगुरु आदि शंकराचार्य ने इस मंदिर की आधार शिला रखी थी. उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित त्रियुगी नारायण मंदिर के बारे में मान्यता है कि सतयुग में भगवान शिव और पार्वती का विवाह यहीं हुआ था.
ये मंदिर भगवान विष्णु का था और वो यहां वामन अवतार में मौजूद हैं जिनको साक्षी मानकर भगवान शिव और माता पार्वती ने यहां विवाह किया था. मंदिर प्रांगण में यहां एक धूनी जलती दिखती है जिसके बारे में मंदिर में मौजूद पंडितों का कहना है कि ये धूनी वो अग्नि है जिसके इर्द गिर्द भगवान शिव और माता पार्वती ने फेरे लिए थे, तीन युगों (सतयुग,त्रेता,द्वापर) से ये यूं ही निरंतर जल रही है. इसीलिए इस मंदिर का नाम त्रियुगी नारायण रखा गया है.
उत्तराखंड सरकार के पर्यटन विभाग ने इसे डेस्टिनेशन वेडिंग प्लेस के तौर पर अपनी साइट पर प्राथमिकता के साथ रखा है. मंदिर में स्थित धर्मशिला पर बिठाकर ही शादियां करवाई जाती हैं. मान्यता है कि उसी शिला पर बैठकर माता पार्वती और भगवान शिव के विवाह के रस्मों रिवाज हुए है. कोरोना काल से पहले कई टीवी सितारों ने यहां आकर विवाह किया था.
ये मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है. सोनप्रयाग से 10 किमी की दूरी पर यह मंदिर स्थित है. इसकी बनावट बिल्कुल केदारनाथ मंदिर जैसी ही है. हिंदू पौराणिक ग्रंथों के अनुसार पर्वतराज हिमावत के यहां पार्वती के रूप में सती का पुनर्जन्म हुआ था.
माता पार्वती ने केदार पर्वत में स्थित पार्वती गुफा में भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी. भगवान शिव ने उनकी तपस्या से खुश होकर उन्हें दर्शन दिए और हिमालय के मंदाकिनी क्षेत्र के भगवान विष्णु के इसी मंदिर में उनका विवाह हुआ. भगवान विष्णु ने माता पार्वती के भाई के रूप में सभी रीति रिवाज निभाए थे जबकि ब्रह्मा जी इस विवाह के पुरोहित बने थे.
मंदिर में घुसते वक्त चार जलकुंड दिखाई पड़ते हैं- रुद्र कुंड, विष्णु कुंड, ब्रह्म कुंड और सरस्वती कुंड. इन सभी में जल सरस्वती कुंड से आता है. मान्यता है कि सभी देवताओं ने विवाह से पहले यहां स्नान किया था. सरस्वती कुंड के जल से सिर्फ आचमन किया जाता है, बाकी कुंड के जल में स्नान करने से संतानहीनता से मुक्ति मिल जाती है ऐसी मान्यता है.