उत्तराखंड के जोशीमठ को ढहता देख केंद्र से लेकर उत्तराखंड सरकार तक ऐक्शन में आई है. आठ सदस्यीय विशेषज्ञ पैनल बनाकर जोशीमठ की स्थिति का जायजा लिया गया. एक्सपर्ट पैनल ने अपनी रिपोर्ट केंद्र और प्रदेश की सरकार को भेज दिया है. इसमें दरक रहे घरों को तोड़ने की सिफारिश की गई है. मरम्मति से काम नहीं बनने की बात कही जा रही है.
सवाल यह उठ रहा है कि दरक रहे घरों को सरकार तोड़ने की कार्रवाई करेगी. क्या इसकी जगह नए मकान बनाकर लोगों को दिए जाएंगे. बहरहाल, सरकार की ओर से गठित आठ सदस्यीय विशेषज्ञ पैनल ने सिफारिश की है कि जोशीमठ में अधिकतम क्षति वाले घरों को ध्वस्त कर दिया जाना चाहिए.
जो क्षेत्र रहने योग्य हो गए हैं, उनकी पहचान की जानी चाहिए. जोखिम वाले लोगों का पुनर्वास तत्काल प्रभाव से कराया जाना चाहिए. सरकार को अब एक्सपर्ट पैनल की अनुशंसा पर फैसला लेना है.
आपदा प्रबंधन विभाग के सचिव रंजीत सिन्हा के नेतृत्व में पैनल ने 5 और 6 जनवरी को जोशीमठ इलाके का सर्वेक्षण किया. केंद्र और राज्य सरकार को सौंपी गई रिपोर्ट के संबंध में एक वरिष्ठ अधिकारी ने शनिवार को कहा कि पहली नजर में जोशीमठ का 25 फीसदी हिस्सा प्रभावित लग रहा है.
इस इलाके की आबादी करीब 25 हजार है. इन इलाकों में भूमि-धंसाव की समस्या देखी गई है. इमारतों और अन्य स्ट्रक्चर में नुकसान की तीव्रता का पता लगाने के लिए एक सर्वेक्षण अभी चल रहा है. इसे तीन श्रेणियों गंभीर, मध्यम और मामूली में रखा जाएगा.
जोशीमठ में इमारतों को हुए नुकसान और जमीन के धंसने की स्थिति का आकलन करने के लिए तत्काल काम करने वाली विशेषज्ञ टीम ने दो दिवसीय सर्वेक्षण के दौरान प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया। शनिवार को अपनी रिपोर्ट को अंतिम रूप दिया. सर्वे टीम ने सुनील, मनोहर बाग, सिंहधर और मारवाड़ी क्षेत्रों में अगस्त 2022 में कराए सर्वेक्षण की तुलना में गंभीर नुकसान देखा है.
कुछ ही महीनों में नुकसान को बढ़ता पाया गया. टीम ने जेपी कॉलोनी का भी दौरा किया. यहां पर दो जनवरी की रात 400 लीटर प्रति मिनट की रफ्तार से पानी का प्रवाह होने लगा था. एक्विफर फटने के बाद जमीन के धंसान में वृद्धि हुई है. रिपोर्ट में भी कहा गया है कि पानी का तेज बहाव और दरारों में वृद्धि एक साथ होती है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि एक्विफर के फटने से जमीन के नीचे वैक्यूम क्रिएट हुआ। इस कारण जमीन नीचे की तरफ दरकी. मकानों से लेकर सड़क और अन्य संरचनाओं में दरार में वृद्धि का यह बड़ा कारण था. जेपी कॉलोनी से मारवाड़ी तक आई दरार का यह बड़ा कारण माना गया है. जेपी कॉलोनी में तो कई स्थानों पर एक मीटर तक गहरी दरार देखी गई. इस कारण इमारतों की रिटेनिंग वॉल और नींव को नुकसान पहुंचा है, जिससे इमारतों और जमीन में दरारें आ गई हैं. इसके बाद भी भी पानी के स्रोत का पता नहीं चल पाया है. इसका स्रोत निर्धारित करने की जरूरत सर्वे टीम ने बताई है.
Joshimath Sinking: सर्वे के बाद रिपोर्ट तैयार, केंद्र और राज्य सरकार से जर्जर भवनों को ढहाने की सिफारिश
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