उत्तराखंड| चमोली जिले के दरकते शहर जोशीमठ को भूस्खलन-धंसाव क्षेत्र घोषित कर दिया गया है, जबकि एक्सपर्ट्स ने आगाह करते हुए बताया कि वहां जमीन का धंसना मुख्यतः एनटीपीसी की तपोवन विष्णुगढ़ जल विद्युत परियोजना के कारण है. यह एक तरह से बहुत ही गंभीर चेतावनी है कि लोग पर्यावरण के साथ इस हद तक खिलवाड़ कर रहे हैं कि पुराने हालात को फिर से बहाल कर पाना बेहद मुश्किल होगा.
वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र में एनडीए सरकार की एजेंसियां और विशेषज्ञ जोशीमठ की स्थिति से निपटने के लिए प्लान बनाने में राज्य सरकार की मदद में जुट गए. फिलहाल लोगों की सुरक्षा तत्काल प्राथमिकता है. यह जानकारी प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) की ओर से रविवार (आठ जनवरी, 2023) को हाई लेवल रिव्यू मीटिंग के बाद कही गई.
गढ़वाल के आयुक्त सुशील कुमार (जमीनी स्तर पर स्थिति की निगरानी करने वाली एक समिति के प्रमुख) ने समाचार एजेंसी पीटीआई-भाषा को रविवार को बताया कि दरकते शहर के क्षतिग्रस्त घरों में रहने वाले 60 से अधिक परिवारों को अस्थाई राहत केंद्रों में पहुंचाया गया.
स्थानीय प्रशासन ने हिमालयी शहर में चार-पांच स्थानों पर राहत केंद्र स्थापित किए हैं और कम से कम 90 और परिवारों को निकाला जाना है. जोशीमठ में कुल 4,500 इमारतें हैं, जिनमें से 610 में बड़ी दरारें आ गई हैं. वे इससे रहने लायक नहीं रह गई हैं. सर्वे चल रहा है और प्रभावित इमारतों की संख्या बढ़ सकती है.
कुमार के मुताबिक, प्रभावित क्षेत्र और उन घरों जिनमें पहले दरारें पड़ गई थीं और जिनमें हाल में दरारें पड़ी हैं, की वजह से एक बड़ी चापाकार आकृति बन गई है जो 1.5 किलोमीटर के दायरे में फैली हो सकती है. जोशीमठ में काफी समय से जमीन धंसने की घटनाएं धीरे-धीरे हो रही हैं, लेकिन पिछले एक हफ्ते में इसकी गति बढ़ गई है और घरों, खेतों और सड़कों में बड़ी दरारें दिखाई दे रही हैं. पिछले हफ्ते नगर के नीचे पानी का एक स्रोत फूटने के बाद स्थिति और खराब हो गई थी.
उधर, जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी समिति की ताजा रिपोर्ट के लेखकों में से एक अंजल प्रकाश ने बताया, ‘‘जोशीमठ समस्या के दो पहलू हैं. पहला- बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे का विकास, जो हिमालय जैसे बहुत ही नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र में हो रहा है और यह बिना किसी योजना प्रक्रिया के हो रहा है, जहां हम पर्यावरण की रक्षा करने में सक्षम हैं. दूसरा- जलवायु परिवर्तन. भारत के कुछ पहाड़ी राज्यों में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव दिख रहे हैं. उदाहरण के लिए, 2021 और 2022 उत्तराखंड के लिए आपदा के वर्ष रहे हैं.’’
प्रकाश ने कहा, ‘‘हमें पहले यह समझना होगा कि ये क्षेत्र बहुत नाजुक हैं और पारिस्थितिकी तंत्र में छोटे परिवर्तन या गड़बड़ी से गंभीर आपदाएं आएंगी, जो हम जोशीमठ में देख रहे हैं.’’ एचएनबी गढ़वाल विश्वविद्यालय के भूविज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो वाई पी सुंद्रियाल ने कहा, ‘‘सरकार ने 2013 की केदारनाथ आपदा और 2021 में ऋषि गंगा में आई बाढ़ से कुछ भी नहीं सीखा है. हिमालय एक बहुत ही नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र है. उत्तराखंड के ज्यादातर हिस्से या तो भूकंपीय क्षेत्र पांच या चार में स्थित हैं, जहां भूकंप का जोखिम अधिक है.’’
दिल्ली में मंथन के बाद पीएमओ की ओर से बताया गया कि प्रभावित परिवारों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने का काम फिलहाल चल रहा है. प्रधानमंत्री चिंतित हैं और उन्होंने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के साथ स्थिति का जायजा लिया है. एनडीआरएफ की टीम और एसडीआरएफ की चार टीम पहले ही जोशीमठ पहुंच चुकी हैं, जहां जमीन धंसने और सैकड़ों घरों में दरारें आने से लोग दहशत में हैं. मीटिंग में पीएम के प्रधान सचिव पी.के.मिश्रा ने कहा कि प्रभावित क्षेत्र में रहने वाले लोगों की सुरक्षा तत्काल प्राथमिकता होनी चाहिए और राज्य सरकार को निवासियों के साथ स्पष्ट और निरंतर संचार स्थापित करना चाहिए.