उत्तराखंड के जलवायु परिवर्तन से पिघल रहे ग्लेशियर, झीलों के बढ़ते आकार बड़ा रहा खतरे का संकेत

हिमालय की पर्वत श्रृंखला, जो सदियों से उसकी रक्षा का कवच बनी रही है, अब तेजी से पिघलते ग्लेशियरों के कारण संकट में है। बढ़ते तापमान और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के कारण, ये ग्लेशियर तेजी से संकुचित हो रहे हैं और नए ग्लेशियल झीलों का निर्माण हो रहा है।

इन झीलों का आकार भी तेजी से बढ़ रहा है, जिससे न केवल हिमालय की पारिस्थितिकी पर असर पड़ रहा है, बल्कि इससे क्षेत्रीय जलवायु और बाढ़ की स्थिति भी गंभीर हो सकती है। यह बदलाव अत्यधिक चिंता का विषय बन गया है और इसके दीर्घकालिक प्रभावों को लेकर वैज्ञानिक और पर्यावरणविद् गहरी चिंताओं का सामना कर रहे हैं।

ग्लेशियल झीलों के टूटने से उत्पन्न आपदाएँ, जैसे कि 2013 में केदारनाथ और 2023 में सिक्किम में आई विनाशकारी घटनाएँ, ने बड़ी चिंता पैदा की है। इसरो के सैटेलाइट डाटा के आधार पर उत्तराखंड में 13 नई झीलों की पहचान की गई है, जिनमें से पांच को अत्यधिक संवेदनशील माना गया है।

वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी, अन्य संगठनों के सहयोग से, इन पांच झीलों के खतरों का विश्लेषण करेगा। वाडिया संस्थान की टीम ने हाल ही में उत्तराखंड के भीलंगना नदी बेसिन में 4750 मीटर की ऊँचाई पर स्थित एक ग्लेशियल झील का दौरा किया, जो सर्दियों के दौरान पूरी तरह से जमी और बर्फ से ढकी रहती है। यह झील भी भविष्य में संभावित खतरों का सामना कर सकती है।

वसंत के आगमन के साथ तापमान में वृद्धि होती है, जिससे बर्फ पिघलनी लगती है और ग्लेशियरों पर एक नई झील का निर्माण होता है। इस संबंध में अध्ययन कर रहे वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. अमित कुमार के अनुसार, 1968 में इस क्षेत्र में कोई झील मौजूद नहीं थी। 1980 में पहली बार झील दिखाई दी और तब से इसके आकार में लगातार वृद्धि हो रही है।

2001 तक झील के बढ़ने की दर अपेक्षाकृत धीमी थी, लेकिन इसके बाद इसकी वृद्धि दर में लगभग पांच गुना तेजी आ गई है। 1994 से 2022 के बीच, झील का क्षेत्र 0.07 वर्ग किमी से बढ़कर 0.35 वर्ग किमी तक पहुँच गया है, जो पर्यावरणीय दृष्टिकोण से एक गंभीर समस्या को जन्म देता है।

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