उत्तराखंड में भर्ती परीक्षाओं को लेकर भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी गहरी है कि एक की जांच पूरी नहीं हो पाती दूसरा भर्ती घोटाला सामने आ जाता है। सबसे पहले उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग (यूकेएसएसएससी) में हुई धांधली को लेकर सियासी मामला गरमाया रहा.
उसके बाद राजधानी देहरादून स्थित विधानसभा में बैक डोर से हुई भर्ती को लेकर घोटाला सामने आ गया. हालांकि इन दोनों मामलों में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कड़ा एक्शन लिया. सीएम धामी ने यूकेएसएसएससी में परीक्षा में हुई गड़बड़ी को लेकर एसटीएफ को जांच सौंपी.
सीएम के आदेश के बाद सक्रिय हुई एसटीएफ ने सचिवालय में कर्मचारियों अधिकारियों की गिरफ्तारी की. इसके बाद मुख्यमंत्री ने विधानसभा में हुई भर्ती घोटाले में गड़बड़ी की जांच करने के लिए स्पीकर ऋतु खंडूड़ी को तत्काल एक्शन लेने को कहा. विधानसभा अध्यक्ष खंडूड़ी ने पिछले दिनों 228 अवैध रूप से की गई भर्तियों को निरस्त करने के आदेश जारी किए. इसके साथ विधानसभा सचिव को भी तत्काल प्रभाव से सस्पेंड कर दिया गया.
4 जुलाई, साल 2021 में पुष्कर सिंह धामी के राज्य में मुख्यमंत्री पद की कमान संभालने के बाद स्पष्ट संदेश दिए थे कि भ्रष्टाचार को जड़ से समाप्त किया जाएगा. उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग और विधानसभा में हुई भर्ती घोटाले का मामला शांत भी नहीं हो पाया था कि शनिवार को एक और 6 साल पहले हुई यूकेएसएसएससी द्वारा आयोजित ग्राम पंचायत विकास अधिकारी भर्ती घोटाला में बड़ी कार्रवाई की गई है.
सीएम धामी के निर्देश पर एसटीएफ ने बड़ी कार्रवाई करते हुए साल 2016 में ग्राम पंचायत विकास अधिकारी भर्ती घोटाले में आयोग के तीन पूर्व अधिकारियों को गिरफ्तार किया है. एसटीएफ ने आयोग के तीन पूर्व अधिकारी आरबीएस रावत पूर्व चेयरमैन, सचिव मनोहर कन्याल, पूर्व परीक्षा नियंत्रक आरएस पोखरिया को किया गया है. यह इस भर्ती परीक्षा प्रकरण में अब तक की सबसे बड़ी कार्रवाई है.
बता दें कि 2016 वीपीडीओ भर्ती के मामले में लंबे समय से जांच चल रही थी. लेकिन मुख्यमंत्री धामी के कड़े रुख के बाद जांच एजेंसियों ने भी तेजी दिखाई. उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग ने 6 मार्च 2016 को ग्राम पंचायत विकास अधिकारी चयन परीक्षा करवाई गई. यह परीक्षा प्रदेश के सभी 13 जिलों के 236 परीक्षा केंद्रों में संचालित की गई. इस परीक्षा में कुल 87,196 परीक्षार्थियों ने परीक्षा में भाग लिया.
वहीं, 30 मार्च 2016 को परीक्षा का परिणाम घोषित किया गया था. वहीं, इस परीक्षा में धांधली की विभिन्न शिकायतों के आधार पर उत्तराखंड शासन द्वारा तत्कालीन अपर मुख्य सचिव की अध्यक्षता में 2017 में जांच समिति गठित की गई थी. इस समिति की रिपोर्ट के आधार पर हाईकोर्ट ने इस परीक्षा परिणाम को अनियमितताओं के पुष्टि के बाद निरस्त करने के आदेश दिये थे.
जिसके बाद इस परीक्षा धांधली की जांच 2019 में विजिलेंस को सौंपी गई. जिसके बाद इस मामले में विजिलेंस की ओर से आरोपियों पर मुकदमा दर्ज करने के लिए शासन से अनुमति मांगी गई थी. शासन से अनुमति मिलने के बाद विजिलेंस द्वारा इस मामले में मुकदमा दर्ज किया गया.
वहीं, 2020 से 2022 तक इस मामले की जांच विजिलेंस ही कर रही थी. इस भर्ती में धांधली के खिलाफ लगातार उठ रहे सवालों के बाद अगस्त महीने में मुख्यमंत्री के आदेश पर यह जांच एसटीएफ को सौंपी गई. जिसके बाद से एसटीएफ इस मामले की जांच कर रही थी.