सोमवार से देवभूमि उत्तराखंड यूनिवर्सिटी में लोक कला पर आधारित चार दिवसीय ”आदि रंग” कार्यशाला एवं प्रदर्शनी का शुभारम्भ हुआ, जिसमें आदिवासी जनजातीय गौंड़ कला पर प्रकाश डाला गया। इस दौरान गौंड़ कला विशेषज्ञ जानकी ने कहा कि मध्य भारत से उद्भव हुयी गौंड़ कला, लोक और आदिवासी जनजातीय कला का एक प्रकार है।
इसमें रंगों से भरे जटिल डिज़ाइन का संगम है, जिसमें बिंदु और रेखाओं से पैटर्न तैयार कर प्रकृति, पशु पक्षी और दैनिक जीवन को प्रदर्शित किया जाता है। ये एक ऐसा माध्यम है, जिसमें प्रकृति और दिव्यता का अद्भुत संगम छुपा हुआ है। दुनियाभर में इस कला की पहचान और प्रसिद्धि का कारण है इस कला की अद्वितीय और आश्चर्यजनक शैली। यही कारण है कि फाइन आर्ट्स छात्रों के सुनहरे भविष्य के लिए गौंड़ कला एक बेहतरीन विकल्प साबित हो सकता है।
कार्यशाला के दौरान जानकी ने छात्रों की गौंड़ कला सम्बंधित जिज्ञासाओं का समाधान किया। इस दौरान डीन स्कूल ऑफ़ जर्नलिज्म, लिबरल आर्ट्स एंड फैशन डिज़ाइन प्रोफ़ेसर दीपा आर्या ने कहा कि भविष्य में एक मुक़ाम हासिल करने की दिशा में गौंड़ कला एक बेहतरीन विकल्प हो सकती है। यही कारण है कि छात्रों के लिए कार्यशाला आयोजित कर गौंड़ कला पर विस्तार से प्रकाश डाला जा रहा है और छात्र भी काफी उत्साह दिखा रहे हैं। इस दौरान डॉ राजकुमार पांडेय, मोहन विश्वकर्मा, पूजा पांडेय आदि उपस्थित रहे।