उत्तराखंड में करीब एक साल पहले ‘भू कानून’ लागू करने के लिए स्थानीय लोगों ने व्यापक स्तर पर आंदोलन चलाया था. राजधानी देहरादून समेत कई शहरों में लोगों ने बैनर, पोस्टर लेकर रैली भी निकाली थी.
वहीं देवभूमि के लोगों ने भू कानून लागू करने के लिए सोशल मीडिया पर भी काफी समय तक मुहिम भी चलाई थी. राज्य में विधानसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भू कानून को लेकर एक 5 सदस्यीय कमेटी का भी गठन किया था.
इसी साल फरवरी महीने में विधानसभा चुनाव के दौरान भू कानून का मुद्दा भी छाया रहा. उत्तराखंड में भू कानून को लेकर बनाई गई कमेटी ने आज मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है.
कमेटी की रिपोर्ट मिलने के बाद सीएम धामी ने कहा कि उत्तराखंड में भू कानून को लेकर जल्द ही फैसला लेंगे. भू-कानून के परीक्षण व अध्ययन को पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार की अध्यक्षता में गठित उच्च स्तरीय समिति की बैठक में कानून को सख्त बनाने की संस्तुति को अंतिम रूप दिया गया. गौरतलब है कि भू कानून समिति में अध्यक्ष समेत कुल पांच सदस्य हैं. इसमें समिति के अध्यक्ष पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार हैं.
सदस्य के तौर पर दो रिटायर्ड आईएएस अधिकारी डीएस गर्ब्याल और अरुण कुमार ढौंडियाल शामिल हैं. डेमोग्राफिक चेंज होने की शिकायत करने वाले अजेंद्र अजय भी इसके सदस्य हैं. उधर, सदस्य सचिव के रूप में राजस्व सचिव आनंद वर्धन फिलहाल इस समिति में हैं. कांग्रेस की सरकार के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री एनडी तिवारी ने फूलप्रूफ भू-कानून बनाया था.
लेकिन त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार ने कॉर्पोरेट के नाम पर, इन्वेस्टमेंट के नाम पर, निवेश के नाम पर, भू कानून तहस-नहस कर दिया. राज्य में जो मांग चल रही है पहले लोगों को भू-कानून के बारे में पढ़ना चाहिए. एक पूरे राज्य भर के लिए भू-कानून होना चाहिए जिससे भूमाफिया दूर रहें.
बता दें कि साल 2000 में जब उत्तराखंड को उत्तर प्रदेश से अलग कर अलग संस्कृति, बोली-भाषा होने के दम पर एक संपूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया था. उस समय कई आंदोलनकारियों समेत प्रदेश के बुद्धिजीवियों को डर था कि प्रदेश की जमीन और संस्कृति भू माफियाओं के हाथ में न चली जाए, इसलिए सरकार से एक भू-कानून की मांग की गई.