केदारनाथ जो की विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाले इलाकों में हैं, वहाँ पर मौसम का सटीक पूर्वानुमान आज भी एक बड़ी चुनौती बना हुआ है। यहां मौसम का मिजाज कब बदल जाए, इसका पूर्वानुमान लगाना बेहद कठिन है। जून 2013 की विनाशकारी आपदा के बाद, सरकार ने इस क्षेत्र में मौसम के सटीक पूर्वानुमान के लिए डॉप्लर रेडार स्थापित करने की घोषणा की थी।
इस घोषणा ने लोगों में उम्मीद जगाई थी कि अब वे समय रहते संभावित प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षित रह सकेंगे। हालांकि, यह महत्वाकांक्षी योजना निविदा प्रक्रिया से आगे नहीं बढ़ पाई। डॉप्लर रेडार लगाने की प्रक्रिया में विभिन्न प्रशासनिक और तकनीकी बाधाओं के चलते इसे अब तक कार्यान्वित नहीं किया जा सका है। इस कारणवश, केदारनाथ क्षेत्र में मौसम की अनिश्चितता का डर आज भी बना हुआ है और स्थानीय लोग एवं पर्यटक बिना किसी पूर्व चेतावनी के अचानक होने वाली बारिश और बर्फबारी का सामना करने के लिए मजबूर हैं।
धाम में अर्ली वाॅर्निंग सिस्टम होता तो बीते दिनों आई आपदा से पूर्व ही सुरक्षा उपाय किए जा सकते थे, इससे हजारों लोगों की जान खतरे में नहीं पड़ती। समुद्रतल से 11750 फीट की ऊंचाई पर स्थित केदारनाथ तीन तरफ से पहाड़ियों से घिरा संकरा घाटी क्षेत्र है। मेरु-सुमेरु पर्वत की तलहटी पर स्थित केदारनाथ मंदिर के दोनों तरफ मंदाकिनी व सरस्वती नदी बहती हैं।