प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आरंभित ड्रीम प्रोजेक्ट के लिए केदारनाथ धाम को सुरक्षित करने और सजाने का प्रयास किया जा रहा है। हालांकि धाम तक पहुंचने का मार्ग अभी भी सुरक्षित नहीं है। पहाड़ियों से पत्थर गिरने का खतरा हमेशा बना रहता है और हिमस्खलन भी एक बड़ी चुनौती है।
केदारनाथ तक पहुंचने के लिए गौरीकुंड से 16 किलोमीटर लंबा पैदल मार्ग है जो भूस्खलन के खतरे से भरा है। इस रास्ते पर चिरबासा, छौड़ी, जंगलचट्टी, रामबाड़ा, लिनचोली और छानी कैंप जैसी स्थानों पर भी भूस्खलन और हिमस्खलन का खतरा है। पिछले छह वर्षों में इस मार्ग पर यात्रियों की मौत हो चुकी है, लेकिन इसके बावजूद रास्ते पर सुरक्षा के कोई ठोस इंतजाम नहीं किए गए हैं।
इससे पहले भी वर्ष 2017 में छौड़ी में पहाड़ी से गिरे पत्थर की चपेट में आने से एक यात्री की मौके पर मौत हो गई थी। इसी वर्ष चिरबासा में भी पहाड़ी से गिरे पत्थर से एक महिला यात्री की मौत हो गई थी। वर्ष 2018 में भीमबली में भारी भूस्खलन से एक यात्री को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। भारी मलबे से घटना के दो दिन बाद शव मिला था।