विधान सभा नतीजे 2023: क्यों उखड़ गया कांग्रेस का दम! ये हैं हार के 5 बड़े कारण

पांच राज्यों में चुनाव होने के बाद 4 के नतीजे लगभग साफ हो चुके हैं. 4 राज्यों में से 3 में कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ रहा है. 2024 के आम चुनावों से पहले बीजेपी के लिए यह जीत बड़े मायने रखती है. इस परिणाम को खासकर भारत की हिन्दी बेल्ट का मूड कहा जा सकता है.

इन विधानसभा चुनावों में बीजेपी की जीत के कई कारण हो सकते हैं, परंतु देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस अपनी हार के बड़े कारणों पर जरूर सोच-विचार करेगी. यदि ऊपरी तौर पर देखा जाए तो कांग्रेस की हार के 5 बड़े कारण ये हो सकते हैं-

  1. कांग्रेस का लचर संगठन – जमीनी स्तर पर कांग्रेस का संगठन काफी कमजोर नजर आता है. एक समय था जब कांग्रेस सेवा दल, महिला कांग्रेस, सर्वोदय, यूथ कांग्रेस जैसे संगठन पार्टी के लिए खूब काम करते थे. उनका संपर्क सीधा लोगों से था और सरकार की नीतियों और योजनाओं को आम लोगों तक पहुंचना सरल हो जाता था. परंतु पिछले काफी समय से ये सभी संगठन सुस्त नजर आते हैं. राज्य में सरकार होने के बावजूद वोटरों तक बात न पहुंचा पाना यही बताता है.
  2. नेतृत्व में विश्वास की कमी – सबसे बड़े कारणों में एक कारण यह भी है कि कांग्रेस का नेतृत्व कमजोर दिखने लगा है. हालांकि भारत जोड़ा यात्रा से राहुल गांधी को एक मास लीडर (जन-नेता) के तौर पर स्थापित करने की कोशिश की गई. वह यात्रा जहां-जहां से गुजरी, वहां-वहां लोग जुड़ते भी दिखे, मगर जब तक भीड़ वोटों में तब्दील न हो, तब तक किसी भी नेता का जन-नेता बन पाना मुश्किल है. कांग्रेस के भीतरी संगठनों में ही अपने नेतृत्व के प्रति विश्वास की कमी नजर आती है, जिसका लाभ सीधे तौर पर भाजपा को मिला है.
  3. गुटबाजी – इस बार मध्य प्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस के अंदर ही बड़ी गुटबाजी देखने को मिली. राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के गुटों में तकरार पहले दिन से ही उजागर थी. पूरे पांच सालों तक कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व इसे गड़बड़ी को ठीक करने में जुटा रहा. मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में जाने के बाद कई छोटे नेताओं ने भी बीजेपी का दामन थाम लिया. तब से वह खाली जगह भरी नहीं गई है.
  4. कमजोर कम्युनिकेशन – सवा है कि कांग्रेस के संगठन कमजोर क्यों हैं? दिखता है कि नेतृत्व की बात संगठन तक साफ-साफ नहीं पहुंच पा रही है. इस बार प्रियंका गांधी ने काफी प्रचार किया और कई तरह के वादे किए. परंतु वे वादे लोगों को समझ नहीं आए. इसे दूसरी तरह से कहा जाए तो कह सकते हैं कि प्रियंका अपनी बात लोगों को समझा नहीं पाईं. कमोबेश यही स्थिति राहुल गांधी की भी रही है. उन्होंने प्रचार किया, मगर लोगों से सीधे कनेक्ट नहीं कर पाए. इसके उलट भाजपा में नरेंद्र मोदी समेत सभी नेताओं की बातें लोगों समझ में आईं. चुनाव के नतीजे इस बात की गवाही देते हैं.
  5. उलटे पड़ते बयान – कांग्रेस के नेताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को टारगेट करने की विफल कोशिश की. हर बार भाषायी सीमा लांघी गई और भाजपा ने इसे अपने पक्ष में मोड़ने में कामयाबी हासिल कर ली. कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर विवादित बयान दिया था. कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा, “मोदी जी, झूठों के सरदार बन गए हैं.” प्रधानमंत्री मोदी को लेकर इस तरह की बयानबाजी होने से हर बार भाजपा को ही लाभ पहुंचा है.

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