यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर उत्तराखंड के बाद अब गुजरात की बारी है. भारतीय जनता पार्टी शासित इस सूबे में विधानसभा चुनाव 2022 से पहले यूसीसी लागू करने की तैयारी है. ऐसा इसलिए, क्योंकि राज्य की कैबिनेट वहां पर भी उत्तराखंड की तरह प्रस्ताव पेश कर सकती है.
सूत्रों ने बताया कि मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल की अध्यक्षता में शनिवार (29 अक्टूबर, 2022) को मीटिंग होगी, जिसमें राज्य में यूसीसी लागू करने से जुड़े कदम उठाने पर विचार-विमर्श किया जाएगा. इसे लेकर एक कमेटी का प्रस्ताव भी दिया जा सकता है. हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज के नेतृत्व में यह कमेटी काम करेगी.
वैसे, बीते कुछ सालों में यूसीसी या समान नागरिक संहिता पर सियासी और समाजिक तौर पर माहौल गर्म रहा है. देश की बहुसंख्यक आबादी इसे लागू करने की पुरजोर मांग करती आई है, जबकि अल्पसंख्यक इसका विरोध करते रहे हैं.
संविधान के अनुच्छेद-44 में यूसीसी का जिक्र है, जिसमें कहा गया है कि ‘राज्य, भारत के समस्त राज्यक्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता प्राप्त कराने का प्रयास करेगा’. यूसीसी में देश के हर नागरिक के लिए एक समान कानून होता है, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का क्यों न हो. यूसीसी में शादी, तलाक और जमीन-जायदाद के बंटवारे आदि में सभी धर्मों के लिए एक ही कानून लागू होता है.
मौजूदा समय में देश में जो स्थिति है उसमें सभी धर्मों के लिए अलग-अलग नियम हैं. संपत्ति, विवाह और तलाक के नियम हिंदुओं, मुस्लिमों और ईसाइयों के लिए अलग-अलग हैं. इस समय देश में कई धर्म के लोग विवाह, संपत्ति और गोद लेने आदि में अपने पर्सनल लॉ का पालन करते हैं. मुस्लिम, ईसाई और पारसी समुदाय का अपना-अपना पर्सनल लॉ है, जबकि हिंदू सिविल लॉ के तहत हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध आते हैं.
यूनिफॉर्म सिविल कोड क्या है?
यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) सभी धार्मिक समुदायों पर लागू होने के लिए ‘एक देश एक नियम’ का आह्वान करता है. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 के भाग 4 में ‘यूनिफॉर्म सिविल कोड’ शब्द का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है.
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 44 कहता है कि ‘राज्य भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता को सुरक्षित करने का प्रयास करेगा.’ यह कोड विवाह, तलाक, रखरखाव, विरासत, गोद लेने और उत्तराधिकार जैसे क्षेत्रों को कवर करता है. यूसीसी इस विचार पर आधारित है कि आधुनिक सभ्यता में धर्म और कानून के बीच कोई संबंध नहीं है. डॉ. बी आर आम्बेडकर ने संविधान का प्रारूप तैयार करते समय कहा था कि यूनिफॉर्म सिविल कोड वांछनीय है, लेकिन फिलहाल यह स्वैच्छिक रहना चाहिए, और इस प्रकार संविधान के मसौदे के अनुच्छेद 35 को भाग IV में ‘राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतोंद’ के एक भाग के रूप में जोड़ा गया था. भारतीय संविधान में अनुच्छेद 44 के रूप में.