पूर्व केंद्रीय मंत्री और मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने कहा कि विकास और विनाश साथ-साथ नहीं चल सकते क्योंकि वह ऐसे समय में जोशीमठ पहुंचीं जब उत्तराखंड के पहाड़ी शहर में 700 से अधिक घर क्षतिग्रस्त हो गए हैं और भूस्खलन की अभूतपूर्व चुनौती का सामना कर रहे हैं.
उमा भारती ने नई दिल्ली स्थित नीति निर्माताओं की आलोचना की, जो पहाड़ों, गंगा को ‘कम लटका हुआ फल’ मानते हैं, उन्होंने कहा कि उन्हें डर है कि ये नीति निर्माता एक दिन उत्तराखंड, गंगा और हिमालय को खा जाएंगे.
दिल्ली में मौजूद नीति निर्माताओं ने ऐसी परियोजनाओं को एक नया नाम दिया है जो तेजी से की जा सकती हैं – कम लटकने वाले फल, ऐसे फल जो तेजी से खाए जा सकते हैं. मुझे डर है कि ये नीति निर्माता एक दिन उत्तराखंड को खा जाएंगे. उमा भारती ने कहा कि उन्होंने एनटीपीसी परियोजना के खिलाफ 2017 में सुप्रीमकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था जिसमें उन्होंने कहा था कि परियोजना से ‘अपरिवर्तनीय नुकसान’ होगा.
उमा भारती ने कहा कि उस समय हलफनामे को केंद्र का समर्थन नहीं मिला था. “फिर रेनी गांव की घटना हुई. मैंने उस समय कहा था कि यह इशारा करता है कि जोशीमठ भी इसी तरह की आपदा का सामना करेगा. तब मुझे बताया गया कि प्रधानमंत्री कार्यालय ने यहां के अधिकारियों को फटकार लगाई और पीएमओ मामले को लेकर संवेदनशील है.
उमा भारती ने कहा, पीएमओ की बैठक जहां अधिकारियों की खिंचाई की गई थी. तब जोशीमठ डूब नहीं रहा था. इन सबके बाद, एक नई विशेषज्ञ समिति का गठन किया गया जिसने 50% पूर्ण परियोजनाओं को हरी झंडी दे दी. और यह (एनटीपीसी) परियोजना इसके अंतर्गत आती है. अब विशेषज्ञ कहेंगे कि संकट में एनटीपीसी परियोजना की क्या भूमिका है. उमा भारती ने कहा इससे पहले मैं कुछ नहीं कहूंगी.
जोशीमठ से सोनिया गांधी से अपील की और कहा कि यह आरोप-प्रत्यारोप का समय नहीं है, क्योंकि तात्कालिक कार्य क्षेत्रों को खाली करना है. उमा भारती ने कहा, “विकास और विनाश साथ-साथ नहीं चल सकते.
विकास और विश्वास साथ-साथ रहेंगे. विकास, मानव जीवन, पर्यावरण ये सब साथ-साथ चलेंगे, लेकिन विकास और विनाश साथ-साथ नहीं चलेंगे. जोशीमठ ने कई चुनौतियों का सामना किया है और यह भी मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में गुजरेगा, जो ऋषि और पीएम नरेंद्र मोदी की तरह हैं, जिन्हें हिमालय से आशीर्वाद मिला है.