अभी कुछ दिन पहले ही केंद्र सरकार ने बिना आरक्षण वाले मंत्रालय में यूपीएससी की लेटरल एंट्री नोटिफिकेशन के वापस ले लिया है. प्रधानमंत्री मोदी के कहने पर बोर्ड ने इस नोटिफिकेशन के वापस ले लिया है. लेकिन, राहुल गांधी हो या अखिलेश यादव या फिर तेजस्वी यादव, विपक्ष के नेताओं ने इसकी वापसी पर अपना पीठ थपथपाना लेना शुरू कर दिया है.
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने हाल ही में अपने ट्वीट कर, ‘एनडीए की गठबंधन वाली सरकार और बीजेपी की बहुमत वाली सरकार’ में अंतर बताया है. हालांकि ये पहली बार नहीं है, जब नरेंद्र मोदी की सरकार ने पब्लिक की सेंटीमेंट को देखते हुए बिल वापस लिया है. आइए इतिहास की यात्रा करते हुए, नरेंद्र मोदी सरकार की उन फैसलों जानते हैं, जो आम जनता की भावना को देखते हुए वापस लिया गया था.
साल 2014, जब केंद्र में दशकों बाद पहली बार पूर्ण बहुमत के साथ कोई सरकार सत्ता में आई थी. नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को रिकॉर्ड 282 सीटें मिलीं, जो कि बहुमत से 9 सीटें अधिक ही थी, वहीं बीजेपी के गठबंधन सहयोगियों को मिलाकर सीटों का ये आंकड़ा 336 तक चला गया. एनडीए की इस प्रचंड जीत का सेहरा नरेंद्र मोदी कके सर बंधा और फिर वही प्रधानमंत्री पद पर आसीन हुए.
लोकसभा चुनाव 2014 में ऐसा माना जाने लगा था कि ‘मोदी का लहर’ चल रहा है. 2019 के लोकसभा चुनाव में भी ऐसा कह सकते हैं कि ‘मोदी मैजिक’ चला और बीजेपी ने 2014 के अपने ही रिकॉर्ड को ध्वस्त कर दिया और 303 सीटों पर बाजी मार ली, वहीं, उनके गठबंधन एनडीए को 353 सीटें जीतीं. अब बात आती है 2024 के 18वीं लोकसभा इलेक्शन की. पीएम मोदी, जो कि बीजेपी के प्रमुख चेहरा थे.
18वीं लोकसभा 2024 के चुनाव के नतीजे बीजेपी के मुताबिक नहीं रहीं. बीजेपी को 240 मिलीं. वहीं, उनके एलायंस को 392 तक पहुंची. 10 साल में पहली बार हुआ था, जब बीजेपी बहुमत के जादुई आंकड़े को छू नहीं पाई थी. लेकिन, तीसरी बार पीएम मोदी के नेतृत्व में सरकार बनी. पिछले 10 साल में पीएम मोदी की आगुवाई सरकार ने कई ऐसे फैसले लिए थे, जिसका विपक्ष ने विरोध किया था. लेकिन, आम जनता वाली बिल सरकार अपने बहुमत के दम पर आसानी से कराने में सफल रही.
अब जब 2024 में बीजेपी की सरकार बनी तो उसे बहुमत के आंकड़े के लिए एनडीए के साथियों के सहारे की जरूरत पड़ी. पीएम मोदी के नेतृत्व में बनी एनडीए गठबंधन की ये सरकार तीसरे महीने में प्रवेश कर चुकी है. लेकिन इस बार कई मौके ऐसे आए, जब सरकार को अपने कदम वापस खींचने पड़े. इसमें 4 बिल तो खूब चर्चा में रहे, जहां सरकार को आखिरी वक्त में अपना फैसला बदलना पड़ा.
मोदी सरकार को जिन 4 बिल को वापस लेना पड़ा-
1. केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों लेटरल एंट्री
हाल ही में यूपीएससी (UPSC) ने केंद्र सरकार के अलग-अलग मंत्रालयों के 45 पदों के लिए लेटरल इंट्री का नोटिफिकेशन जारी किया था. इस पर जमकर विवाद हुआ. विपक्ष ने आरक्षण के मुद्दे पर सरकार को घेरा. साथ ही बीजेपी की सहयोगी पार्टियों जेडीयू, LGP (रामविलास पासवान) और जितन राम मांझी की पार्टी ने इसका विरोध किया. हालांकि, पीएम मोदी आदेश जारी कर इस विज्ञापन को वापस लेने का आदेश दिया.
2. वक्फ बोर्ड बिल-
तीसरे कार्यकाल में नरेंद्र मोदी सरकार वक्फ बोर्ड संशोधलन बिल लेकर आई थी. इस बिल को लेकर सदन में जमकर हंगामा हुआ. विपक्ष ने सरकार को इसपर सदन में लगातार घेरती रही. सरकार चाहती तो इस बिल को पास करा सकती थी, लेकिन बढ़ते विवाद के देखते हुए सरकार ने इसे जेपीसी (ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमेटी) को भेज दिया.
3. ब्रॉडकास्ट बिल 2024-
तीसरे कार्यकाल के पहले ही मानसून सत्र में केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव इस बिल को पेश किया था. इस बिल को लेकर न केवल विपक्ष बल्कि डिजिटल न्यूज पब्लिशर्स और इंडिविजुअल कॉन्टेंट क्रिएटर्स ने सरकार के इस कदम का विरोध किया. अंततः मिनिस्ट्री ऑफ इंफॉर्मेशन एंड ब्रॉडकास्टिंग ने सोसल मीडिया ‘एक्स’ पर इस बिल को वापस लेने और इस नए मसौदे के साथ इसे लाने की जानकारी दी. मंत्रालय ने आम लोगों के भी इसपर राय मांगे है. 15 अक्टूबर तक इस पर राय दिया जा सकता है.
4. लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस बिल-
वित्त मंत्री निर्माला सितारमण 23 जुलाई को बजट सत्र में यह बिल लेकर आईं थीं. इसमें सरकार ने कुछ ऐसे प्रावधान किए थे, जिससे बिजनेस मैन से लेकर आम आदमी भी काफी सरकार के प्रति नाराजगी जताई थी. बहरहाल, सरकार को चौतरफा आलोचना झेलनी पड़ी, जिसके बाद सरकार ने इसमें संशोधन कर जनता के पक्ष में कर दिया. इसमें क्या संशोधन हुई है, इसके लिए आपको डिटेल में अलग से पढ़ना होगा.
ये रहे मोदी 3-0 के फैसले जिन पर चली कैंची
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