राहुल गांधी जो कहते हैं, उसे भाजपा बढ़ा-चढ़ाकर पेश करती है. लंदन में उनकी कथित भारत-विरोधी टिप्पणी से लेकर उनकी दाढ़ी की लंबाई और भारत जोड़ो यात्रा के दौरान उनके द्वारा पहनी गई टी-शर्ट तक को भाजपा बहस का मुद्दा बनाती रहती है.
यह अकारण नहीं है. भाजपा चाहती है कि 2024 का लोकसभा अभियान मोदी बनाम राहुल की लड़ाई में बदल जाए, जहां मोदी निस्संदेह विजेता के रूप में उभरेंगे. भाजपा की रणनीति मूल मुद्दों से जनता का ध्यान हटाने और चुनाव को एक व्यक्तित्व-उन्मुख अभियान में बदलने की है. बीजेपी केवल राहुल को अपने विरोधी के तौर पर खड़ा करना चाहती है. वह पूरी कांग्रेस पार्टी को निशाने पर नहीं लेना चाहती है.
इस बीच, अन्य विपक्षी दल अपने ही मैदान पर झल्ला रहे हैं. उदाहरण के लिए, समाजवादी पार्टी ने रामचरितमानस की चौपाइयों पर आपत्ति जताई और इस मुद्दे को एक जातिवादी रंग देने की कोशिश की. बीजेपी ने अब इस महीने के अंत में नवरात्रि के दौरान उत्तर प्रदेश के सभी जिलों में रामायण पाठ की घोषणा कर पलटवार किया है.
निराश अखिलेश के पास रामायण पाठ का स्वागत करने और इसके लिए अधिक धन आवंटन की मांग करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है. विपक्ष द्वारा उठाए गए अन्य मुद्दे जैसे महंगाई, कानून-व्यवस्था, पुलिस अत्याचार और भ्रष्टाचार लग गए हैं. नाम न छापने की शर्त पर सपा के एक प्रवक्ता ने बताया, एक टीवी डिबेट में मेरे बयान के लिए मुझ पर एक दर्जन से अधिक मामले दर्ज किए गए हैं. मैं अब सतर्क रहना पसंद करूंगा.
उन्होंने कहा, मीडिया भाजपा के सुर में सुर मिलाता है और विपक्ष जो कहता या करता है, उसे नजरअंदाज कर दिया जाता है. वैसे भी विपक्षी दलों को विश्वास की कमी का सामना करना पड़ रहा है और लोग केवल वही मानते हैं, जो मोदी कहते हैं.
हालांकि समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी भाजपा को हराने की अपनी प्रतिबद्धता को दोहराते हैं, लेकिन वे कांग्रेस के साथ गठबंधन करने से कतराते हैं, जो राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा की एकमात्र विकल्प है.
समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) दोनों का जन्म कांग्रेस के वोटबैंक से हुआ है.
कभी उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों के साथ-साथ मुस्लिम, दलित, कांग्रेस के मुख्य आधार हुआ करते थे. उन्हें डर है कि कांग्रेस के साथ गठजोड़ से ये वोट बैंक फिर से कांग्रेस में जा सकते हैं.
राहुल गांधी कारक के बारे में बात करते हुए, राजनीतिक नेताओं को लगता है कि राहुल गांधी जाहिर तौर पर क्षेत्रीय क्षत्रपों के लिए खतरा हैं, जिन्हें लगता है कि अगर राहुल को भाजपा के खिलाफ किसी भी मंच का नेतृत्व करने के लिए कहा गया तो वे भारी पड़ जाएंगे.
एक नेता ने कहा, यह अहंकार का सवाल है, न कि मुद्दों का. एक वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक ने कहा, चाहे वह ममता बनर्जी हों, नीतीश कुमार हों, अखिलेश यादव हों या मायावती हों, वे सभी राष्ट्रीय नेता बनने की आकांक्षा रखते हैं, भले ही उनकी सीमाएं उनके राज्य से बाहर न हों. कांग्रेस विभाजित विपक्ष 2024 में फिर से भाजपा का मार्ग प्रशस्त करेगा.
उन्होंने कहा, इसके अलावा, विपक्षी नेताओं ने यह भी देखा है कि उद्धव ठाकरे और आम आदमी पार्टी के साथ क्या हुआ है. वे स्पष्ट रूप से भाजपा से लड़ने के लिए एक सीमा से आगे जाने से सावधान हैं. यहां तक कि मायावती जैसी तेजतर्रार नेता भी अपने सुरक्षित घर में दुबक गई हैं. केवल नूराकुश्ती हो रही है.
यूपी में कांग्रेस ने इस बात को लगभग स्वीकार कर लिया है कि उनकी रात अभी खत्म नहीं हुई है. हम केवल ‘वो सुबह कभी तो आएगी’ गा सकते हैं, लेकिन कब कोई नहीं जानता. हमारा ‘राजभवन घेराव’ कार्यक्रम पार्टी कार्यालय के गेट पर समाप्त होता है और नेता 2024 के लिए रणनीतियों के बारे में बात भी नहीं करते हैं. कांग्रेस के एक पूर्व विधायक ने कहा राहुल गांधी ने, यूपी से हाथ धोकर बहन प्रियंका के लिए छोड़ दिया, जो एक साल से यहां नहीं आई हैं. हम केवल यह देख सकते हैं कि आने वाले महीनों में नाटक कैसे सामने आता है.
भाजपा के एक पदाधिकारी ने कहा, एक विभाजित विपक्ष हमें पूरी तरह से सूट करता है. इन पार्टियों का कोई सामान्य कार्यक्रम या विचारधारा नहीं है और ये अहंकार से प्रेरित हैं. प्रदेश एक बार फिर 2024 में भाजपा को कें द्र में सत्ता में वापस लाएगा.
साभार-IANS