अजित पवार के दिल में कब पड़ा ‘बगावत का बीज’, जानें शरद पवार की एनसीपी में टूट की कहानी

रविवार को हुए नाटकीय घटनाक्रम में एनसीपी नेता अजित पवार ने एक बार फिर से महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली. इस बार राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) को ही तोड़कर महा विकास आघाड़ी (MVA) को ‘महा ब्रेक अघाड़ी’ के रूप में सीमित कर दिया. इसी के साथ पिछले कुछ महीनों से अजित पवार के एनसीपी के भीतर नाराज होने और सीएम या डिप्टी सीएम की कुर्सी न दिए जाने पर पार्टी छोड़ने की इच्छा की सभी अटकलें सच साबित हुईं.

एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार और उनकी बेटी एवं पार्टी की नवनियुक्त राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष सुप्रिया सुले भाजपा के खिलाफ राष्ट्रीय विपक्षी मोर्चा बनाने का प्रयास करने के लिए पिछले सप्ताह पटना गए हुए थे. उसी दौरान एनसीपी को तोड़ने को लेकर भाजपा के साथ अजित पवार की बातचीत परवान चढ़ी. सूत्रों ने न्यूज 18 को बताया कि अजित पिछले एक हफ्ते से बीजेपी शिंदे खेमे के संपर्क में थे. इसकी आखिरी कड़ी शरद पवार का अजित पवार को एनसीपी का प्रदेश अध्यक्ष बनाने का वादा नहीं करना था.’

सूत्रों का कहना है कि अजित पवार को भाजपा ने उनका हक भी दिया है. उन्होंने कहा, ‘अजित पवार के पास हमेशा एनसीपी विधायकों का बहुमत रहा है. उन्होंने आज भी यही दिखाया है.’ अजित ने हमेशा स्पष्ट किया है कि उनकी कोई राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा नहीं है, बल्कि वह महाराष्ट्र में राकांपा का नेतृत्व करना चाहते हैं. उनका मानना था कि इसकी जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी, पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस, तेलंगाना में बीआरएस, आंध्र में वाईएसआरसीपी या बिहार में राजद के विपरीत राकांपा कभी भी महाराष्ट्र में क्षेत्रीय खिलाड़ी के रूप में अपने दम पर सत्ता में नहीं आ पाई थी.

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि रविवार के विद्रोह के बीज 10 जून को बोए गए थे, जब शरद पवार ने अपनी बेटी सुप्रिया सुले और पार्टी के वरिष्ठ नेता प्रफुल्ल पटेल को राकांपा के कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में नामित किया था. जबकि अजित पवार के लिए किसी भूमिका की घोषणा नहीं की गई थी, जो विपक्ष के नेता ‘एलओपी’ के रूप में कार्य करते हैं.

अजित ने पिछले महीने राकांपा के 25वें स्थापना दिवस पर जवाब देते हुए कहा था कि वह विपक्ष के नेता का पद छोड़ना चाहते हैं, लेकिन उन्होंने खुले तौर पर राकांपा के प्रदेश प्रमुख पद की वकालत की थी, लेकिन शरद पवार ने अपने भतीजे की इच्छा को पूरा नहीं किया. ऐसा लगता है कि भाजपा ने अजित के असंतोष और अपमान की भावना को भांपते हुए उन्हें एकनाथ शिंदे देवेंद्र फडणवीस सरकार में अपने वफादारों के लिए मंत्री पद के साथ साथ उपमुख्यमंत्री के पद की पेशकश की.
























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