कोलकाता| आभी हाल की दो घटनाओं से पश्चिम बंगाल के राजनीतिक हलकों में हलचल है. पहली घटना, 16 दिसंबर को अमित शाह और ममता बनर्जी के बीच एक बैठक, और दूसरा, विपक्षी नेताओं पर केंद्रीय एजेंसी की छापेमारी के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दोषी ठहराने से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री का इनकार.
उन्होंने गत 21 दिसंबर को घोषणा की थी कि वह आने वाले सप्ताह में कोलकाता में होने वाले उस कार्यक्रम में शामिल होंगी, जिसमें पीएम मोदी भी आ रहे हैं. इसने अटकलों को जन्म दिया है कि ममता बनर्जी भाजपा और मोदी-शाह पर अपने रुख को नरम कर रही हैं. उनका हाथ संभवतः राज्य सरकार की वित्तीय तंगी और केंद्र से किसी भी वित्तीय मदद की कमी के कारण तंग है, और इसलिए मजबूरी में वह नरमी बरत रही हैं.
एक अंग्रेजी अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक ममता बनर्जी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पूर्वी क्षेत्रीय परिषद की बैठक के बाद 16 दिसंबर को राज्य सचिवालय, नबन्ना की 14वीं मंजिल पर मुख्यमंत्री के कक्ष में 15 मिनट की बैठक की. उस समय, राज्य प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘हमारे पास केंद्र से बकाया है. केंद्र सरकार ने पिछले जनवरी से मनरेगा में एक भी पैसा (पश्चिम बंगाल) का भुगतान नहीं किया है…बकाया राशि 6,000 करोड़ रुपये से अधिक है. बनर्जी ने शनिवार को इस मामले पर गृह मंत्री को एक पत्र दिया था और हम उम्मीद करते हैं कि मुख्यमंत्री ने बैठक के दौरान गृह मंत्री के साथ इस बिंदु को उठाया होगा.’
रिपोर्ट में तृणमूल कांग्रेस (TMC) के अंदरूनी सूत्रों के हवाले से कहा गया है, ‘फंड रोकने के केंद्र के फैसले ने राज्य प्रशासन को प्रभावित किया है और सीएम अपनी सरकार पर वित्तीय बोझ को कम करने के लिए पीएम और केंद्रीय गृह मंत्री की मदद लेने की कोशिश कर रही हैं. लेकिन विपक्ष का आरोप है कि इस साल की शुरुआत में कथित स्कूल नौकरी घोटाला सामने आने के बाद से ममता बनर्जी बैकफुट पर हैं और भाजपा के साथ राजनीतिक समझौते की कोशिश कर रही हैं, ताकि केंद्रीय एजेंसियां बंगाल से पीछे हट जाएं. इस केस में बनर्जी के भतीजे और टीएमसी सांसद अभिषेक बनर्जी सहित पार्टी के कई नेता जांच एजेंसियों के निशाने पर हैं.