शुक्रवार को वयोवृद्ध कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस के प्राथमिक सदस्यता सहित पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया. उन्होंने पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को पांच पन्नों का एक नोट भेजा, जहां उन्होंने पार्टी के साथ अपने लंबे संबंध और इंदिरा गांधी के साथ अपने करीबी संबंधों को याद किया.
गुलाम नबी आजाद ने अपने विस्तृत त्याग पत्र में लिखा, कांग्रेस पार्टी की स्थिति ‘नो रिटर्न’ के बिंदु पर पहुंच गई है. इसके साथ ही उन्होंने राहुल गांधी को पार्टी के पतन का जिम्मेदार ठहराया. कहा कि वरिष्ठ नेताओं की अनदेखी की गई और पार्टी को छोड़ने के लिए राहुल गांधी को जिम्मेदार बताया.
काफी समय से पार्टी से नाराज चल रहे गुलाम नबी आजाद ने सोनिया गांधी को भेजे पत्र में कहा यूपीए -1 और यूपीए -2 दोनों सरकारों के गठन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. हालांकि इस सफलता का एक प्रमुख कारण यह था कि पार्टी अध्यक्ष के रूप में आपने वरिष्ठ नेताओं के बुद्धिमान परामर्श पर ध्यान देने के अलावा उनके निर्णय पर भरोसा जताया और उन्हें शक्तियां सौंपी.
उन्होंने पत्र में आगे कहा कि हालांकि दुर्भाग्य से राहुल गांधी के राजनीति में प्रवेश के बाद और विशेष रूप से जनवरी, 2013 के बाद जब उन्हें आपके द्वारा उपाध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया था, तो उनके द्वारा पहले मौजूद संपूर्ण सलाहकार तंत्र को ध्वस्त कर दिया गया. सभी वरिष्ठ और अनुभवी नेताओं को दरकिनार कर दिया गया और अनुभवहीन चाटुकारों की नई मंडली पार्टी के मामलों को चलाने लगी.
वह पत्र में आगे लिखते हैं कि इस अपरिपक्वता का सबसे ज्वलंत उदाहरण राहुल गांधी द्वारा मीडिया की चकाचौंध में एक सरकारी अध्यादेश को फाड़ देना था. उक्त अध्यादेश को कांग्रेस कोर ग्रुप में शामिल किया गया था और बाद में भारत के प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा सर्वसम्मति से अनुमोदित किया गया था और भारत के राष्ट्रपति द्वारा भी विधिवत अनुमोदित किया गया था.
इस ‘बचकाना’ व्यवहार ने प्रधानमंत्री और भारत सरकार के अधिकार को पूरी तरह से उलट दिया. 2014 में यूपीए सरकार की हार के लिए इस एक ही कार्रवाई ने महत्वपूर्ण योगदान दिया.