लोकतांत्रिक व्यवस्था में सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों का महत्व बराबर का होता है. जहां सत्ता पक्ष नीतियों, योजनाओं के जरिए विकास के नए आयाम गढ़ने की बात करता है वहीं विपक्ष खामियों को गिना सरकार पर दबाव बनाता है. लेकिन फर्ज करें कि अगर किसी राज्य में सदन नेता प्रतिपक्ष विहीन हो तो क्या होगा.
गुजरात विधानसभा का इस समय सत्र चल रहा है. सत्ता पक्ष के सामने कांग्रेस और आम आदमी पार्टी विपक्ष की भूमिका में हैं लेकिन कोई नेता प्रतिपक्ष नहीं है. दरअसल नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी हासिल करने के लिए किसी भी दल को कुल सीटों का 10 फीसद हिस्सा मिलना चाहिए.
लेकिन गुजरात में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी उस शर्त पर खरे नहीं उतर रहे. बता दें कि कांग्रेस की तरफ से स्पीकर शंकर लाल चौधरी से नेता प्रतिपक्ष की गुजारिश की गई थी. लेकिन नियमों का हवाला दे स्पीकर ने अर्जी खारिज कर दी.
नेता प्रतिपक्ष बनने के नियम
गुजरात विधानसभा में कुल 182 सीट
नेता प्रतिपक्ष का दर्जा हासिल करने के लिए 10 फीसद सीट की जरूरत
इस नियम के मुताबिक कांग्रेस के पास 18 विधायक होने चाहिए
लेकिन कांग्रेस सिर्फ 17 सीट हासिल करने में कामयाब हुई थी
23 फरवरी को बजट सेशन के पहले दिन कांग्रेस ने अमित चावड़ा के नाम की अर्जी नेता प्रतिपक्ष के लिए दी थी. लेकिन यहां एक दिलचस्प मामला भी है, साल 1985 में कांग्रेस के सामने जनता पार्टी विपक्ष में थी और उसके पास भी नेता प्रतिपक्ष का दर्जा हासिल करने के लिए पर्याप्त संख्या नहीं थी. लेकिन विधानसभा अध्यक्ष ने जनता पार्टी को निराश नहीं किया था. स्पीकर के निर्णय पर कांग्रेस नेता मनीष दोषी ने कहा कि बीजेपी उस तरह का फैसला ले सकती थी. लेकिन उन्होंने हमारी अर्जी को ठुकरा दिया. इसके साथ ही कहा कि भले ही पार्टी को नेता प्रतिपक्ष का पद ना मिला हो हम जनहित के मुद्दे पहले की तरह उठाते रहेंगे.