सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसले में कहा कि ट्रांसफर-पोस्टिंग पर अधिकार चुनी हुई सरकार का होना चाहिए. अदालत के इस फैसले के तुरंत बाद अरविंद केजरीवाल सरकार ने कुछ अधिकारियों को हटाने की कार्रवाई में जुट गई. लेकिन शुक्रवार को केंद्र सरकार ने अध्यादेश के जरिए लेफ्टिनेंट गवर्नर को सुप्रीम बना दिया. अब इस अध्यादेश की व्याख्या आम आदमी पार्टी और बीजेपी दोनों अपने अपने तरीके से कर रहे हैं.
आप का कहना है कि यह तो सुप्रीम कोर्ट की अवमानना है तो बीजेपी ने कहा कि ऐसा लग रहा कि केजरीवाल जी ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को ढंग से नहीं पढ़ा है. बता दें कि केंद्र सरकार द्वारा अध्यादेश लाए जाने की आम आदमी पार्टी के साथ साथ दूसरे राजनीतिक दलों ने भी कड़ी आलोचना की थी.
बीजेपी आईटी सेल के हेड अमित मालवीय ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के पैरा 95 में साफ लिखा है कि अगर संसद एनसीटीडी के कार्यक्षेण से संबंधित कोई कानून बनाती है तो लेफ्टिनेंट गवर्नर के कार्यकारी शक्तियों में कानून के दायरे में बदलाव होगा. इससे आगे जीएनसीटीडी के सेक्शन 49 में भी साफ जिक्र है कि लेफ्टिनेंट गवर्नर और मंत्रिमंडल दोनों को किसी खास मौके पर राष्ट्रपति के निर्देशों को अमल में लाना होगा.
बीजेपी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद केजरीवाल सरकार पर अफसरों को डराने का आरोप लगाते हुए कहा कि अध्यादेश जरूरी था. उपराज्यपाल कार्यालय के अनुसार आठ अधिकारियों ने केजरीवाल सरकार पर घोर उत्पीड़न का आरोप लगाया था.
दो शिकायतें पहले और छह सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद प्राप्त हुईं. रिपोर्ट में कहा गया है. सेवा सचिव आशीष मोरे के अलावा, मुख्य सचिव नरेश कुमार, विशेष सचिव किन्नी सिंह, वाईवीवीजे राजशेखर और बिजली सचिव शुरबीर सिंह ने केजरीवाल सरकार के खिलाफ शिकायत की. राजशेखर केजरीवाल के आवास की मरम्मत का मामला देख रहे थे.