दिल्ली में एक बार फिर से सियासत गरमा गई है. केजरीवाल के इस्तीफे के ऐलान के बाद दिल्ली में एक बार फिर से 26 साल पुराना इतिहास दोहराया जा सकता है. क्योंकि साल 1998 में साहिब सिंह वर्मा के इस्तीफे के बाद सुषमा स्वराज को मुख्यमंत्री बनाया गया था. वहीं अब केजरीवाल के इस्तीफे की घोषणा के बाद एक बार फिर से राजधानी में कुछ ऐसा ही हो सकता है. दरअसल, आबकारी नीति घोटाले में फंसे दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ऐलान किया है कि वह दो दिन के अंदर इस्तीफा दे देंगे.
करीब साढ़े पांच महीने जेल में रहने के बाद केजरीवाल पिछले सप्ताह ही तिहाड़ से बाहर आए हैं. जेल से बाहर आते ही उन्होंने बड़ा दांव खेलते हुए अपने इस्तीफे का ऐलान कर दिया. यह पहली बार नहीं है, जब दिल्ली में भ्रष्टाचार के चलते किसी मुख्यमंत्री को इस्तीफा देना पड़ा हो. इससे पहले भी दिल्ली में मुख्यमंत्री भ्रष्टाचार के आरोप में इस्तीफा दे चुके हैं.
बता दें कि साल 1996 में तत्कालीन मुख्यमंत्री और बीजेपी के दिग्गज नेता मदन लाल खुराना को इस्तीफा देना पड़ा था. उस वक्त मदन लाल खुराना और बीजेपी के तत्कालीन अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवानी जैन डायरी केस या हवाला घोटाला में फंसे हुए थे. विपक्ष ने बीजेपी को इस मुद्दे पर घेर लिया. उसके बाद जनवरी 1996 में एलके आडवानी ने बीजेपी अध्यक्ष का पद छोड़ दिया. इसके बाद मदन लाल खुराना ने भी मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. उनके बाद साहिब सिंह वर्मा ने दिल्ली के मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली और दो साल तक इस पद पर रहे. हालांकि विधानसभा चुनाव से ठीक प्याज की महंगाई की वजह से उन्हें भी अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा.
साबिह सिंह वर्मा के इस्तीफा के बाद साल 1998 में सुषमा स्वराज दिल्ली की मुख्यमंत्री बनी, जो दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री थीं, लेकिन वह सिर्फ 52 दिनों तक ही दिल्ली की मुख्यमंत्री रह पाईं. क्योंकि विधानसभा चुनाव के नतीजों में बीजेपी बुरी तरह से हार गई. जहां 1993 में बीजेपी को 49 सीटों पर जीत हासिल हुई थी तो वहीं 1998 में बीजेपी सिर्फ 15 सीटों पर ही सिमट गई. जहां 1993 में कांग्रेस को दिल्ली में 14 सीटें मिली थी वहीं 1998 में कांग्रेस को 52 सीटों पर जीत हासिल हुई. उसके बाद बीजेपी कभी दिल्ली की सत्ता में वापसी नहीं कर पाई.