लंदन|……विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मंगलवार को कहा कि फिलहाल दुनिया के किसी देश में भी कोरोना संक्रमण के खिलाफ हर्ड इम्यूनिटी उत्पन्न नहीं हुई है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने उन देशों के दावे को सिरे से खारिज कर दिया जो कि कोरोना के घटते मामलों के मद्देनज़र अपने यहां लोगों में हर्ड इम्यूनिटी (सामूहिक रोग प्रतिरोधक क्षमता) पैदा होने का दावा कर रहे थे. संगठन से स्पष्ट कर दिया कि हालत अब भी बुरे हैं और कोई भी देश ऐसा नहीं, जहां हर्ड इम्यूनिटी उत्पन्न होने जैसी स्थिति नज़र आई हो. इसके आलावा विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चेतावनी जारी करते हुए कहा कि 20 से लेकर 40 साल के युवा कोरोना का संक्रमण दुनिया भर में फैला रहे हैं, उन्हें सतर्कता बरतने की जरूरत है.
डब्लूएचओ के मुताबिक, सिर्फ अकेले अमेरिका में कोरोना संक्रमण के मामले एक करोड़ 15 लाख तक पहुंचने की आंशका है और इतना ही नहीं इस दौरान चार लाख लोगों की मौत की आशंका भी है. बता दें कि ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के कुछ वैज्ञानिकों ने दावा किया था कि ब्रिटेन में लोगों के बीच हर्ड इम्यूनिटी विकसित हो रही है. पहले ऑक्सफोर्ड की स्टडी में दावा किया गया था कि ब्रिटेन के लोगों में आम सर्दी-जुकाम जैसे मौसमी संक्रमण की वजह से पहले ही सामूहिक तौर पर हर्ड इम्यूनिटी का स्तर इतना है कि वे घातक कोरोना वायरस के फिर से पनपने पर उसका सामना कर सकते हैं.
हालांकि डब्लूएचओ ने कहा कि हर्ड इम्यूनिटी विशेष तौर पर वैक्सीनेशन के माध्यम से हासिल की जाती है. अधिकतर वैज्ञानिकों का मानना है कि वायरस के प्रसार को रोकने के लिए कम से कम 70 प्रतिशत आबादी में घातक वायरस को शिकस्त देने वाली एंटीबॉडीज होनी चाहिए. लेकिन, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि अगर आधी आबादी में भी कोरोना वायरस से लड़ने वाली रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी) हो तो एक रक्षात्मक प्रभाव उत्पन्न हो सकता है.हर्ड इम्यूनिटी नहीं अब सिर्फ वैक्सीन का सहारा डब्लूएचओ के आपातकालीन मामलों के प्रमुख डॉक्टर माइकल रेयान ने मंगलवार को एक संवाददाता सम्मेलन में इस सिद्धांत को खारिज करते हुए कहा कि हमें हर्ड इम्यूनिटी हासिल करने की उम्मीद में नहीं रहना चाहिए. उन्होंने कहा कि वैश्विक आबादी के रूप में, अभी हम उस स्थिति के कहीं आसपास भी नहीं हैं जो वायरस के प्रसार को रोकने के लिए जरूरी है.
उन्होंने आगे कहा कि हर्ड इम्यूनिटी कोई समाधान नहीं है और न ही यह ऐसा कोई समाधान है जिसकी तरफ हमें देखना चाहिए. आज तक हुए अधिकतर अध्ययनों में यही बात सामने आई है कि केवल 10 से 20 प्रतिशत आबादी में ही संबंधित एंटीबॉडीज हैं, जो लोगों को हर्ड इम्यूनिटी पैदा करने में सहायक हो सकते हैं. लेकिन, इतनी कम एंटीबॉडीज की दर से हर्ड इम्यूनिटी को नहीं पाया जा सकता. डब्ल्यूएचओ महानिदेशक के वरिष्ठ सलाहकार डॉ. ब्रूस एलवार्ड ने कहा कि किसी कोरोना वायरस वैक्सीन के साथ व्यापक वैक्सीनेशन का उद्देश्य विश्व की 50 प्रतिशत से काफी अधिक आबादी को इसके दायरे में लाने का होगा.
हर्ड इम्यूनिटी का सामान्य भाषा में मतलब है कि अगर कोई संक्रामक बीमारी फैली है तो उसके खिलाफ आबादी के निश्चित हिस्से में बीमारी के प्रति इम्यूनिटी पैदा हो जाए. इस तरह संक्रामक रोगों का फैलना रुकता है, क्योंकि काफी लोग इसके प्रति इम्यून हो चुके होते हैं. इम्यून हुए लोग वे हैं जो कि संक्रमित होने के बाद ठीक हो गए और उनके शरीर में एक निश्चित मात्रा में रोग से लड़ने के लिए एंटीबॉडी मौजूद हैं. इससे कम्युनिटी ट्रांसमिशन की चेन टूट जाती है.