अनंत चतुर्दशी 2022: आज है अनंत चतुर्दशी व्रत, इस विधि से करें भगवान अनंत की पूजा

आज अनंत चतुर्दशी व्रत है. आज भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को भगवान अनंत की पूजा करते हैं और अनंत चतुर्दशी व्रत कथा का श्रवण या पाठ करते हैं. इस व्रत को करने से पाप मिटेगा और मृत्यु के बाद विष्णु लोक में स्थान प्राप्त होगा.

केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र बताते हैं कि चतुर्दशी तिथि 08 सितंबर को रात 09:02 बजे से लेकर 09 सितंबर को शाम 06:07 बजे तक है. आज रवि योग और सुकर्मा योग बना हुआ है. ये दोनों ही योग शुभ फल प्रदान करने वाले होते हैं. आइए जानते हैं मुहूर्त, व्रत कथा और पूजा विधि.

अनंत चतुर्दशी 2022 पूजा मुहूर्त
आज भगवान अनंत की पूजा करने का शुभ समय सुबह 06:03 बजे से लेकर शाम 06:07 बजे तक है. पूजा का शुभ समय रवि योग में ही है और शोभन योग शाम तक है.

अनंत चतुर्दशी व्रत और पूजा विधि
अनंत चतुर्दशी के दिन व्रत और पूजा का संकल्प किया जाता है. फिर कलश स्थापना करते हैं, उस पर कुश से बने हुए भगवान अनंत को स्थापित करते हैं. उसके बाद कच्चे सूत में हल्दी, कुमकुम और केसर लगाकर अनंत धागा बनाते हैं और उसे कलश के पास रख देते हैं. फिर भगवान अनंत की पूजा करते हैं और उनसे प्रार्थना करते हैं कि हे भगवान वासुदेव आप हम सभी की रक्षा करें.

पूजन के बाद अनंत धागे में 14 गांठें लगाते हैं, फिर उसे गले या हाथ में धारण करते हैं. भगवान विष्णु के स्वरूप अनंत भगवान ने 14 लोकों की रचना की थी, इसलिए अनंत धागे में 14 गांठ लगाते हैं. जब पंडवों ने अपना सारा राजपाट खो दिया था और जंगलों में दुखमय जीवन व्यतीत कर रहे थे, तब श्रीकृष्ण ने उनको अनंत चतुर्दशी व्रत करने को कहा था. इस व्रत के पुण्य प्रभाव से पांडवों को उनका राज्य वापस मिला था. हालांकि इसके लिए उनको महाभारत का युद्ध भी लड़ना पड़ा था.

अनंत चतुर्दशी व्रत कथा
प्राचीन समय में सुमंत नामक ब्राह्मण अपनी दीक्षा और बेटी सुशीला के साथ रहता था. सुशीला जब विवाह योग्य हुई तो उसकी मां का निधन हो गया. इस पर सुमंत ने कर्कशा नामक युवती से विवाह कर लिया. काफी समय बाद उसने अपनी बेटी सुशीला का विवाह कौंडिन्य ऋषि से कर दिया. कर्कशा ने अपने दामाद को ईंट-पत्थर देकर विदा किया.

कौंडिन्य ऋषि सुशीला को लेकर अपने आश्रम जा रहे थे, लेकिन रास्ते में रात हो गई तो एक जगह पर रुक गए. वहां पर कुछ महिलाएं अनंत चतुर्दशी व्रत की पूजा कर रही थीं. सुशीला उनके पास गई तो उन लोगों ने उसे व्रत की विधि और महिमा के बारे में बताया. सुशीला भी 14 गांठों वाला अनंत धागा पहन लिया और कौंडिन्य ऋषि के पास आ गई.

कौंडिन्य ऋषि ने उस धागे को तोड़कर आग में डाल दिया, इससे भगवान अनंत का अपमान हुआ. फलस्वरूप कौंडिन्य ऋषि की सारी संपत्ति नष्ट हो गई और वे दुखी रहने लगे. सुशाला ने इसके लिए अनंम धागे को जलाने को वजह माना. फिर कौंडिन्य ऋषि उस अनंत धागे की प्राप्ति के लिए वन में भटकने लगे. एक दिन वे भूख-प्यास से जमीन पर गिर पड़े, तब भगवान अनंत प्रकट हुए.

उन्होंने कहा कि कौंडिन्य तुमने अपनी गलती का पश्चाताप कर लिया है. घर जाकर अनंत चतुर्दशी का व्रत करो और 14 साल तक इस व्रत को करना. इसके प्रभाव से तुम्हारा जीवन सुखमय हो जाएगा और संपत्ति भी वापस आ जाएगी. कौंडिन्य ऋषि ने वैसा ही किया, जिसके फलस्वरूप वे सुखी जीवन व्यतीत करने लगे.



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