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कल से देश में लागू तीन नए आपराधिक कानून, जानिए कितना होगा बदलाव

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01 जुलाई 2024 से तीन नए आपराधिक कानून लागू हो रहे हैं, यानी सोमवार (1 जुलाई) से देश में नए कानून लागू होंगे. तीनों नए कानून वर्तमान में लागू ब्र‍िट‍िश काल के भारतीय दंड संहिता, आपराध‍िक प्रक्रिया संहिता और 1872 के भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लेने वाले हैं. इन कानूनों के नाम हैं, – भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए). ऐसे में आइए जानते हैं इन कानूनों से क्या बदलाव देखने को मिलने वाले हैं.

बीएनएस 163 साल पुराने आईपीसी की जगह लेने वाला है. इसमें सेक्शन 4 के तरह सजा के तौर पर दोषी को सामाजिक सेवा करनी पड़ेगी. अगर किसी ने शादी का धोखा देकर यौन संबंध बनाए तो उसे 10 साल की सजा और जुर्माना हो सकता है. नौकरी या अपनी पहचान छिपाकर शादी के लिए धोखा देने पर भी सजा का प्रावधान किया गया है. अब संगठित अपराध जैसे अपहरण, डकैती, गाड़ी की चोरी, कॉन्ट्रैक्ट किलिंग, आर्थिक अपराध, साइबर-क्राइम के लिए कड़ी सजा दी जाएगी.

राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालने वाले कामों पर भी सजा का प्रावधान किया गया है. बीएनएस आतंकवादी कृत्य को ऐसी किसी भी गतिविधि के रूप में परिभाषित करता है जो लोगों के बीच आतंक पैदा करने के इरादे से भारत की एकता, अखंडता, संप्रभुता या आर्थिक सुरक्षा को खतरे में डालती है. नए कानून में मॉब लिचिंग पर भी सजा का प्रावधान किया गया है. मॉब लिचिंग में शामिल व्यक्ति को दोषी पाए जाने पर उम्रकैद या मौत की सजा के साथ-साथ जुर्माने की सजा मिल सकती है.

बीएनएसएस 1973 के सीआरपीसी की जगह लेगा. इसके जरिए प्रक्रियात्मक कानून में महत्वपूर्ण बदलाव होने वाला है. इसमें एक अहम प्रावधान विचाराधीन कैदियों के लिए है. अगर किसी को पहली बार अपराधी माना गया तो वह अपने अपराध की अधिकतम सजा का एक तिहाई पूरा करने के बाद जमानत हासिल कर सकता है. इसकी वजह से विचाराधीन कैदियों के लिए तुरंत जमानत पाना मुश्किल हो गया है. हालांकि, ये आजीवन कारावास की सजा वाले अपराधों को अंजाम देने वाले लोगों पर लागू नहीं होता है.

बीएनएसएस में कम से कम सात साल की कैद की सजा वाले अपराधों के लिए फोरेंसिक जांच अब अनिवार्य हो जाएगी. फोरेंसिक एक्सपर्ट्स को अपराध वाली जगह से सबूतों को इकट्ठा और रिकॉर्ड करना होगा. अगर किसी राज्य में फोरेंसिक सुविधा का अभाव है तो वह दूसरे राज्य में इस सुविधा का इस्तेमाल कर सकता है. न्यायालयों की व्यवस्था का भी जिक्र किया गया है और बताया गया है कि किस तरह सबसे पहले केस मजिस्ट्रेज कोर्ट में जाएगा और फिर सेशन कोर्ट, हाईकोर्ट होते हुए सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचेगा.

बीएसए 1872 के साक्ष्य अधिनियम की जगह लेने वाला है. इसमें काफी बड़े बदलाव किए गए हैं, खासतौर पर इलेक्ट्रॉनिक सबूतों को लेकर. नया कानून इलेक्ट्रॉनिक सबूतों को लेकर नियमों को विस्तार से बताता है और इसमें द्वितीय सबूत की भी बात हुई है. अभी तक इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड्स की जानकारी एफिडेविट तक सीमित होती थी, लेकिन अब उसके बारे में विस्तृत जानकारी कोर्ट को देनी होगी. आसान भाषा में कहें तो कोर्ट को बताना होगा कि इलेक्ट्रॉनिक सबूत में क्या-क्या शामिल है.

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