हमारे देश में व्रत और त्योहारों का आना-जाना लगा रहता है. एक फेस्टिवल खत्म हुआ दूसरे की तैयारी शुरू हो जाती है. अगर इसी महीने की बात करें तो पहले नवरात्रि, विजय दशमी, (दशहरा) शरद पूर्णिमा, के बाद महिलाओं ने करवा चौथ का व्रत रखकर पति के सुख समृद्धि और लंबी आयु की कामना की. एक बार फिर से माताओं ने व्रत रखा है. आज ‘अहोई अष्टमी’ है. इस दिन मां अपनी संतान की दीर्घायु और सुखमय भविष्य के लिए व्रत रखती हैं. कहा जाता है कि इस दिन से दिवाली की शुरुआत भी हो जाती है.
हर वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष के अष्टमी तिथि को अहोई अष्टमी का त्योहार मनाया जाता है. इस व्रत की परंपरा हमारे देश में प्राचीन काल से चली आ रही है. यह व्रत करवा चौथ के 4 दिन बाद और दीपावली से 8 दिन पहले होता है. कार्तिक मास की आठवीं तिथि को पड़ने के कारण इसे ‘अहोई आठे’ भी कहा जाता है। इस दिन महिलाएं अहोई माता का व्रत रखती हैं और विधि , विधान से उनकी पूजा-अर्चना करती हैं. इस दिन माताएं संतान की उन्नति, सुख-समृद्धि और लंबी उम्र के लिए निर्जला उपवास करती हैं.
शाम को तारों को अर्घ्य देकर इस व्रत का समापन होता है. इस बार अहोई अष्टमी की पूजा पर गुरु-पुष्य योग बन रहा है. बता दें कि अहोई अष्टमी की पूजा के लिए चांदी की अहोई बनाई जाती है, जिसे स्याहु भी कहते हैं. पूजा के समय इस माला कि रोली, अक्षत से इसकी पूजा की जाती है. इसके बाद एक कलावा लेकर उसमे स्याहु का लॉकेट और चांदी के दाने डालकर माला बनाई जाती है. व्रत करने वाली माताएं इस माला को अपने गले में अहोई से लेकर दिवाली तक धारण करती हैं.
ये योग पूजा के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है. बता दें कि 28 अक्टूबर को अष्टमी तिथि 12 बजकर 51 मिनट पर लगेगी. इस दिन गुरु-पुष्य योग बन रहा है, जो पूजा और शुभ कार्यों के लिए शुभ फलदायी होता है. अहोई अष्टमी पूजन का शुभ मुहूर्त शाम 6 बजकर 40 मिनट से रात 8 बजकर 50 मिनट तक है. वहीं शाम 5 बजकर 03 मिनट से 6 बजकर 39 मिनट तक मेष लग्न रहेगी जिसे चर लग्न कहते हैं, इसमें पूजा करना शुभ नहीं माना जाता है.
व्रत के दिन प्रात: उठ कर स्नान किया जाता है और पूजा के समय ही संकल्प लिया जाता है कि ‘‘हे अहोई माता, मैं अपने पुत्र की लंबी आयु एवं सुखमय जीवन हेतु अहोई व्रत कर रही हूं. अहोई माता मेरे पुत्रों को दीर्घायु, स्वस्थ एवं सुखी रखें. शाम को माताएं आकाश में तारों को देखने के बाद ही उपवास खोलती हैं.