अमिताभ की शुरुआती पढ़ाई नैनीताल फिर दिल्ली में हुई. वह अपनी जिंदगी में एक्टर नहीं बल्कि इंजीनियर बनना चाहते थे, साथ ही एयरफोर्स में जाने का भी सपना था. पढ़ाई के बाद वह नौकरी करने के लिए कोलकाता (कलकत्ता) आ गए. लेकिन यहां उनका मन नहीं लगा और अपने सपने को सच करने के लिए साल 1967 में (बंबई) मुंबई पहुंच गए. फिर उन्होंने बॉलीवुड में स्थापित करने के लिए संघर्ष किया.
मायानगरी में काफी समय तक ठोकरें खाते-खाते आखिरकार उन्हें पहली फिल्म ‘सात हिंदुस्तानी’ मिली जो 1969 में रिलीज हुई थी. यह फिल्म अमिताभ के लिए कोई खास फायदा नहीं कर सकी केवल उनकी पहचान बन गई. इस बीच उन्होंने कई फिल्मों में काम किया लेकिन सभी फ्लॉप गईं। अमिताभ के करियर की शुरुआत में फिल्म अभिनेता राजेश खन्ना का डंका बज रहा था. 1973 ऐसा साल था जो महानायक को ‘बुलंदियों’ पर ले गया. इसी साल डायरेक्टर प्रकाश मेहरा निर्देशित फिल्म ‘जंजीर’ में पुलिस इंस्पेक्टर की उनकी भूमिका ने उन्हें ‘एंग्री यंगमैन’ बना दिया. इस फिल्म के बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और लगातार नए कीर्तिमान स्थापित करते गए.
देखते ही देखते अमिताभ बॉलीवुड के ‘शहंशाह’ बन गए. ‘लाखों-करोड़ों प्रशंसकों को भी एक ऐसा अभिनेता मिल गया जिसकी वह तलाश कर रहे थे’. उसके बाद फिल्मी पर्दे पर अमिताभ की दीवानगी सर चढ़कर बोलने लगी. यश चोपड़ा निर्देशित ‘दीवार’ और जेपी सिप्पी निर्देशित ‘शोले’ फिल्म ने उन्हें एक महान अभिनेता के तौर पर गढ़ दिया. उसके बाद डॉन, मुकद्दर का सिकंदर, अमर अकबर एंथोनी, कालिया, सिलसिला, शराबी, कुली शहंशाह, और अग्निपथ, खुदा गवाह फिल्मों ने ही अमिताभ बच्चन को सदी का महानायक बना दिया. अमिताभ की फिल्मों की सबसे बड़ी खासियत उनके डायलॉग थे.
ये ऐसे होते हैं कि तुरंत दर्शकों और प्रशंसकों की जुबान पर चढ़ जाते. कई डायलॉग तो हमारी जीवनशैली का ही हिस्सा बन चुके हैं. बता दें कि वर्ष 1982 में ‘कुली’ फिल्म की शूटिंग के दौरान गंभीर रूप से घायल हुए अपने चहेते अभिनेता अमिताभ की सलामती के लिए पूरा देश प्रार्थना कर रहा था. आखिरकार प्रशंसकों की दुआ रंग लाई अभिताभ एक बार फिर फिल्मी पर्दे पर उसी जोश के साथ लौट आए.
शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार