जानिए कन्याकुमारी के देवी अम्मन मंदिर का इतिहास और जरूरी नियम

कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत एक है. यह नारा नहीं बल्कि वास्तविकता है, जब हम भारत के दक्षिणी छोर पर देवी कन्याकुमारी के दर्शन करते हैं तो उस समय उत्तर में हिमालय के पर्वत श्रृंखलाओं में बसी वैष्णव माता का ध्यान एक बार जरूर आता है. माता पार्वती के ही रूप है कन्याकुमारी में देवी कुमारी अर्थात अविवाहिता कन्या के रूप में है और उधर वैष्णो माता के मंदिर में प्रतिदिन कन्याओं का पूजन होता है. पूर्व में माता कामाख्या है तो पश्चिम में नासिक में सप्तश्रींगी देवी है. यह एक अदृश्य बंधन है जो उत्तर से दक्षिण, पूर्व से पश्चिम तक देश को संस्कृति को और हम सबको बांधता है. भारत के 51 शक्ति पीठों में से एक कन्याकुमारी भी है. माना जाता है कि यहां माता की रीढ़ की हड्डी गिरी थी.

मंदिर का इतिहास
मंदिर पुरातन है और इसके इतिहास का उल्लेख की प्राचीन ग्रंथों में मिलता है. देवी कन्याकुमारी की मूर्ति की स्थापना भगवान परशुराम ने की थी. मंदिर का स्थापत्य लगभग 3000 वर्ष पुराना माना जाता है. परंतु, इतिहास के अनुसार वर्तमान मंदिर आठवीं शताब्दी में पांड्या सम्राटों ने बनवाया था. चोलाचेरी वेनाड और नायक राजवंशो के शासन के दौरान समय-समय पर इसका पुनर्निर्माण हुआ. राजा मार्तंड वर्मा के राज्यकाल में कन्याकुमारी का इलाका त्रावणकोर राज्य का हिस्सा बन गया था, जिसकी राजधानी पद्मनाद पुरम थी. स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद वर्ष 1956 में ये तमिलनाडु का एक जिला बन गया. कन्याकुमारी जिले का नाम देवी कन्याकुमारी के नाम पर ही रखा गया है.

कन्याकुमारी मंदिर के वास्तुकला प्रवीण शैली की है, जिसमें काले पत्थर के खंबों पर नक्काशी की गयी है. मंदिर में कई गुंबज है जिनमें गणेश, सूर्यदेव, अय्यप्पा, स्वामी कालभैरव, विजय सुंदरी और बाला सुंदरी आदि देवी देवताओं की मूर्तियां हैं. मंदिर परिसर में मूल गंगा तीर्थ नामक हुआ है, जहाँ से देवी के अभिषेक का जल लाया जाता है.

मंदिर खुलने का समय
मंदिर के खुलने का समय सप्ताह के प्रत्येक दिन सुबह साढ़े चार से लेकर दोपहर साढ़े 12 तक और शाम 4:00 बजे से लेकर रात्रि 8:00 बजे तक होता है.

मंदिर में दर्शन के नियम
मंदिर में देवी मां के दर्शन के लिए पुरुषों के लिए एक ड्रेस कोड निर्धारित किया गया है, जिसके अंतर्गत पुरुष कमर के ऊपर किसी भी तरह का परिधान पहनकर मंदिर के गर्भ गृह में नहीं जा सकते और देवी मां के दर्शन नहीं कर सकते. महिलाओं के लिए ऐसी किसी भी तरह की पाबन्दी नहीं की गई है.

मंदिर के मुख्य द्वार का रहस्य
मंदिर का मुख्य द्वार पूर्व की ओर है, जो कभी किसी समय खुला रहता था. लेकिन, अब प्रवेश उत्तरी द्वार से किया जाता है. पूर्व द्वार वर्ष में केवल पांच बार विशेष त्योहारों के अवसर पर ही खुलता है. पूर्व द्वार बंद होने के पीछे ये कहानी है की देवी किन्नत का हीरा अत्यंत तेजस्वी था तथा उसकी चमक दूर तक जाती थी. इससे प्रकाश स्तंभ का प्रकार समझ कर जहाज़ इस दिशा में आ जाते और चट्टानों से टकरा जाते थे. एक कथा के अनुसार यह हीरा शीर्ष नाग ने देवी को समर्पित किया था.

मंदिर के भीतर मंदिर से जुड़े 11 तीर्थ स्थल हैं. अंदर के परिसर में तीन गर्भ गृह गलियारे और मुख्य नवरात्रि मंडप है. परंतु इन्हें एकदम से समझ पाना या रुककर देखना इतना आसान नहीं है. अंदर से मंदिर की बनावट भुल भुलैया सी है. मंदिर के गर्भगृह की कांति मन को अचंभित और आंखों को वो चकाचौंध कर देती है. मूर्ति काले पत्थर की बनी है. लंबे हार, चमकीली नथ, बॉर्डर वाली साड़ी ये सब देवी के श्रृंगार को और भी मंत्रमुग्ध कर देने वाला बनाते हैं. देवी को अम्मन अर्थात अम्मा के नाम से जाना जाता है. देवी के अन्य नाम भगवती देवी, बाला, भद्रकाली आदि है.

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