बता दें, मजिस्ट्रेट शर्मा ने पाटकर को मानहानि का दोषी पाया और उन्हें तत्कालीन अध्यक्ष की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के एवज में मुआवजे का भुगतान करने के लिए कहा है. मुआवजा राशि 10 लाख रुपये है. हालांकि, अदालत ने उनकी सजा को एक अगस्त तक के लिए निलंबित किया है. जिससे वह आदेश के खिलाफ ऊपरी अदालत में अपील कर सकें. सुनवाई के दौरान, न्यायाधीश ने कहा कि मैं उम्र और बीमारी को देखते हुए अधिक सजा नहीं सुना सकता.
अदालत ने 24 मई को पाटकर को दोषी पाया. अदालत ने कहा कि यह अब साबित हो गया है कि पाटकर ने यह जानते हुए भी विज्ञप्ति प्रकाशित की कि इससे शिकायतकर्ता की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचेगा. इस वजह से कोर्ट आपको आईपीसी की धारा 300 के तहत दोषी ठहराता है.
पाटकर ने कोर्ट के आदेश पर प्रतिक्रिया दी है. पाटकर का कहना है कि सत्य को कभी भी पराजित नहीं कर सकते. मैंने किसी को बदनाम करने की कोशिश नहीं की है. हम सिर्फ अपना काम करते हैं. हम अदालत के फैसले को चुनौती देंगे.
अब जानें आखिर क्या है पूरा मामला
सक्सेना और पाटकर के बीच साल 2000 से कानूनी लड़ाई जारी है. सक्सेना उस वक्त अहमदाबाद की एनजीओ के चीफ थे. जनवरी 2001 में सक्सेना ने आरोप लगाया कि 25 नवंबर 2000 को पाटकर ने देशभक्त का सच्चा चेहरा नाम से एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की थी. इसमें उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के लिए झूठे लांछन लगाए गए.