मोदी के 10 साल में भारत कितना मजबूत! अगर तीसरी बार सरकार बनीं तो सामने होंगे ये चुनौतियां

आज यानी शनिवार को 1 जून को लोकसभा चुनाव 2024 के आखिरी चरण की वोटिंग हो रही है. इसके बाद 19 अप्रैल से शुरू हुई दुनिया की सबसे बड़ी चुनावी प्रक्रिया का समापन हो जाएगा. 4 जून को मतगणना और फिर नई सरकार का गठन होगा. चुनाव के संभावित नतीजों पर सर्वे करने वाले और बहुत से पॉलिटिकल एनालिस्ट्स का मानना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फिर से सरकार बनाने जा रहे हैं. हालांकि कुछ का ये भी कहना है कि इस बार कांग्रेस की सीटें बढ़ेंगी. ऐसे में सवाल हैं कि मोदी के 10 साल के कार्यकाल में भारत कितना मजबूत (सशक्त) हुआ. अगर वे तीसरी बार पीएम बनते हैं, तो उनके सामने क्या चुनौतियां होंगी.

मोदी के 10 साल में कितना मजबूत भारत?

इस सवाल जवाब सरकार के आर्थिक, रक्षा और विदेश नीति के मोर्चे पर किए गए विकास और सुधारों में तलाशेंगे.

1. आर्थिक मोर्चा

मोदी सरकार के 10 साल के कार्यकाल को देखें तो आर्थिक मोर्च पर देश ने प्रगति जरूर की है. शुक्रवार को जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार, मार्च में समाप्त हुए वित्तीय वर्ष में भारत की अर्थव्यवस्था 8% से अधिक बढ़ी है. सांख्यिकी मंत्रालय के अनुसार ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट (जीडीपी) में 8.2% की वृद्धि हुई. जबकि विकास दर के 7.6 फीसदी रहने का अनुमान था. 2014 से 2023 के बीच भारत की प्रति व्यक्ति जीडीपी में 55% की वृद्धि हुई है. इस अवधि में देश दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है. जीडीपी में इस तेजी का मुख्य कारण मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में अच्छे प्रदर्शन को माना जा रहा है.

जीडीपी के नए आंकड़े को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी गदगद हैं. उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पहले ट्विटर) पर पोस्ट करते हुए लिखा, ‘2023-24 के लिए चौथी तिमाही के जीडीपी विकास के आंकड़े हमारी अर्थव्यवस्था में मजबूत गति दिखाते हैं जो आगे और तेजी से बढ़ने को तैयार है. हमारे देश के मेहनती लोगों को इसके लिए धन्यवाद. 2023-24 के लिए 8.2 प्रतिशत की वृद्धि इस बात का उदाहरण है कि भारत विश्व स्तर पर सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था बना हुआ है. जैसा कि मैंने कहा है, यह आने वाली चीजों का सिर्फ एक ट्रेलर है’

हाल ही में एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी कहा था कि 2004 से 2014 तक देश में कांग्रेस की सरकार थी और उस वक्त मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे. तब देश की अर्थव्यवस्था 11 स्थान पर थी, लेकिन 2014 में पीएम मोदी के कार्यभार संभालने के बाद देश की अर्थव्यवस्था 5वें स्थान पर पहुंच गई है. बता दें कि जीडीपी के मोर्चे पर अभी भारत से आगे अमेरिका, चीन, जर्मनी और जापान हैं.

जीडीपी में ये तेजी सरकार के आर्थिक मोर्चे पर उठाए गए प्रयासों का ही नतीजा है. सरकार ने मेक इन इंडिया, ईज ऑफ डूइंग बिजनेस, टैक्स रिफॉर्म और इन्वेस्टमेंट को बढ़ावा देना जैसे जरूरी कदम उठाए हैं. गुड एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) से टैक्स चोरी पर और डिमोनेटाइजेशन से देश में करप्शन पर लगाम लगाने की कोशिश हुई. ‘मेक इन इंडिया’ प्रोग्राम, निवेश को सुगम बनाता है, इनोवेशन को बढ़ावा देता, स्किल डेवलेपमेंट में वृद्धि करता है. साथ ही इस प्रोग्राम से मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को भी मजबूती मिली.

2. रक्षा मोर्चा


2014 में सत्ता संभालने के बाद से ही मोदी की प्राथमिकता सैन्य ताकत को मजबूत करने की रही है. उन्होंने अपने 10 साल के कार्यकाल में सुरक्षा बलों के आधुनिकीकरण (Modernization) पर खासा ध्यान दिया. इसके लिए उन्होंने नई तकनीकों, सैन्य साजो-सामान, उपकरणों और इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश किया. सरकार ने लगातार अपने बजट में देश के रक्षा बजट में बढ़ोतरी की. बजट 2023-24 में डिफेंस सेक्टर को 5.94 लाख करोड़ रुपये मिले, पिछले साल की तुलना में 13% अधिक है.

डिफेंस सेक्टर में ‘मेक इन इंडिया’ प्रोग्राम के जरिए से स्वदेशी डिफेंस मैन्युफैक्चरिंग को मजूबत किया गया. जिसका असर ये हुआ है कि आज देश का हथियारों के आयात घटा है. अब गोला-बारूद, राइफलें, राडार सिस्टम, और लड़ाकू विमान जैसे सैन्य सामान देश में ही बनाए जा रहे हैं. नीति आयोग के सदस्य वीके सारस्वत का कहना है कि देश अब केवल तत्काल सैन्य जरूरों के लिए आयात पर निर्भर है.

3. विदेश नीति मोर्चा

मोदी सरकार के कार्यकाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम ग्लोबल लेवल पर गूंजा है. मोदी की विदेश नीति की चर्चा हर तरफ होती है. मोदी की विदेश नीति के केंद्र में पड़ोसी देश पहले रहे हैं, जिसका नतीजा है आज भारत के अपने पड़ोसी देशों के साथ संबंध मजबूत हुए हैं. पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था बिल्कुल डंवाडोल है, वह भारत से किसी भी हालत में मुकाबला करने की स्थिति में नहीं है. वहीं, जब-जब चीन सीमा पर तनाव हुआ, तब-तब भारतीय सैनिकों ने दुश्मन को करारा जवाब दिया है.

वहीं, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी और जापान जैसे आर्थिक ताकतों के साथ भारत के कूटनीतिक संबंध भी काफी स्ट्रॉन्ग हुए हैं. इसे हम ऐसे समझ सकते हैं कि यूक्रेन युद्ध को लेकर अमेरिका ने रूस पर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए. भारत ने इन अमेरिकी प्रतिबंधों और उसके विरोध के बावजूद रूस से अपने सैन्य उपकरणों और तेल को खरीदना जारी रखा. अभी हाल में, देश का चाबाहार पोर्ट को लेकर ईरान के साथ समझौता हुआ, जिसके तहत यह पोर्ट 10 साल तक भारत के पास लीज पर रहेगा. इस डील में भी भारत ने अमेरिकी विरोध को नजरअंदाज कर दिया. ये मोदी के कूटनीतिक जीत का नतीजा था कि इस मुद्दे पर भारत को सफलता मिली.

….तो सामने होंगे ये चुनौतियां?

अगर मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बनते हैं तो आर्थिक मोर्चे पर उनके सामने रोजगार, महंगाई और आय असमानता बड़ी चुनौतियां होंगी. उनको उस आबादी के लिए करोड़ों नौकरियां पैदा करनी होंगी, जो अभी भी बड़े पैमाने पर गरीब बनी हुई है. भारत की जनसंख्या दुनिया में सबसे युवा जनसंख्या में से एक है, लेकिन देश अपनी इस ‘युवा शक्ति’ का फायदा नहीं उठा पा रहा है.

इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन की रिपोर्ट के अनुसार, 15 से 29 वर्ष की आयु के शिक्षित भारतीयों के बेरोजगार होने की संभावना बिना किसी स्कूली शिक्षा वाले लोगों की तुलना में अधिक है, जो ‘उनकी आकांक्षाओं और उपलब्ध नौकरियों के बीच बेमेल’ को दर्शाता है.’

रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि भारत में युवा बेरोजगारी दर अब वैश्विक स्तर से अधिक है. ऐसे में मोदी को देश की ‘युवा शक्ति’ का इस्तेमाल और उनको कैसे रोजगार मिल सके. इस दिशा में भी सोचना होगा. वहीं, रक्षा के मोर्चे पर चीन और पाकस्तान के साथ सीमा विवाद, आतंकवाद और समुद्री सुरक्षा उनके सामने ये चिंताएं होंगी. इसके अलावा विदेश नीति के मोर्चे पर उनको कूटनीतिक साझेदारों के साथ सहयोग बढ़ाने और अपनी स्थिति को मजबूत करने की चुनौती होगी.

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