लगभग 21 सालों से केंद्र सरकार एयर इंडिया को बेचने में लगी हुई थी. आखिरकार आज उसने सफलता हासिल कर ली. बता दें कि एयर इंडिया पिछले कई सालों से भारी भरकम बोझ तले दबी हुई थी. मोदी सरकार ने भी पिछले काफी समय से एयर इंडिया को बेचने के लिए मन बना लिया था. लेकिन हर बार सौदा किसी न किसी कारण से टलता रहा.
शुक्रवार को टाटा कंपनी ने एयर इंडिया की बोली जीत ली है. इसी के साथ 67 सालों के बाद एयर इंडिया की टाटा ग्रुप में घर वापसी हो गई है. टाटा संस ने 15 सितंबर को एयर इंडिया को खरीदने के लिए अपनी फाइनल बोली लगाई थी. सरकार के इस सौदे के बाद एयर इंडिया प्राइवेटाइजेशन का रास्ता खुल गया है. टाटा ग्रुप ने सबसे ज्यादा कीमत लगाकर ये बोली जीत ली है. देश की सबसे बड़ी सरकारी एयरलाइन एअर इंडिया की बिक्री के लिए टाटा ग्रुप और स्पाइसजेट के अजय सिंह ने बोली लगाई थी. गौरतलब है कि एयर इंडिया की शुरुआत 1932 में टाटा ग्रुप के जेआर डी टाटा ने ही की थी, वे खुद भी एक बेहद कुशल पायलट थे. 1938 तक कंपनी ने अपनी घरेलू उड़ानें शुरू कर दी थीं. दूसरे विश्व युद्ध के बाद इसे सरकारी कंपनी बना दिया गया.
आजादी के बाद सरकार ने इसमें 49 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदी. 1953 में एयर इंडिया पूरी तरह से सरकारी कंपनी बन गयी थी लेकिन अब ये दोबारा से प्राइवेट हो गई है. इस डील के तहत एयर इंडिया का मुंबई में स्थित हेड ऑफिस और दिल्ली का एयरलाइंस हाउस भी शामिल है. मुंबई के ऑफिस की मार्केट वैल्यू 1,500 करोड़ रुपए से ज्यादा है. मौजूदा समय में एयर इंडिया देश में 4,400 और विदेशों में 1,800 लैंडिंग और पार्किंग स्लॉट कंट्रोल करती है. भारी-भरकम कर्ज से दबी एयर इंडिया को कई सालों से बेचने की योजना में सरकार फेल रही.
सरकार ने 2018 में 76 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचने के लिए बोली मंगाई थी. हालांकि, उस समय सरकार मैनेजमेंट कंट्रोल अपने पास रखने की बात कही थी. जब इसमें किसी ने दिलचस्पी नहीं दिखाई तो सरकार ने मैनेजमेंट कंट्रोल के साथ इसे 100 प्रतिशत बेचने का फैसला किया. बता दें कि एयर इंडिया को सबसे पहले बेचने का फैसला साल 2000 में किया गया था. उसके बाद अब जाकर सरकार ने यह डील की है.