कोविड 19 महामारी के दौरान सभी विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में फाइनल ईयर की परीक्षाएं आयोजित करने के विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के 6 जुलाई के निर्देश के खिलाफ दायर याचिकाओं पर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. इस मामले की अगली सुनवाई अब 18 अगस्त तक टाल दी गई है. वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने छात्रों का पक्ष रखा. उन्होंने कहा कि यूजीसी के के दिशा निर्देश राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा पालन किए जाने के लिए एक न्यूनतम मानक की सख्त व्यवस्था है. वे इसे संकीर्ण नहीं कर सकते हैं.
सुनवाई के दौरान छात्रों का पक्ष रख रहे वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा, ‘गृह मंत्रालय शैक्षणिक संस्थानों के संबंध में अपने निर्णय पर कायम है. कॉलेज और स्कूल 5 महीने के लिए बंद कर दिए गए हैं. आप बिना सिखाए कैसे परीक्षा दे सकते हैं? इसके अलावा, यह महामारी का एक विशेष मामला और परिदृश्य है. एनडीएमए हर जिले में लागू होता है. कोर्ट ने पूछा था कि क्या डीएम एक्ट यूजीसी के वैधानिक कथनों से आगे निकल जाता है, जो इसे परीक्षा आयोजित करने और डिग्री प्रदान करने का अधिकार देता है.’
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने यूजीसी से कहा कि विद्यार्थी के अकादमिक करियर में अंतिम परीक्षा ‘अहम’ होती है और राज्य सरकार यह नहीं कह सकती कि कोविड-19 महामारी के मद्देनजर 30 सितंबर तक अंत तक विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों से परीक्षा कराने को कहने वाले उसके छह जुलाई के निर्देश ‘बाध्यकारी नहीं’ है.
यूजीसी ने कहा कि छह जुलाई को उसके द्वारा जारी दिशा-निर्देश विशेषज्ञों की सिफारिश पर अधारित हैं और उचित विचार-विमर्श कर यह निर्णय लिया गया. आयोग ने कहा कि यह दावा गलत है कि दिशा-निर्देशों के अनुसार अंतिम परीक्षा कराना संभव नहीं है. इससे पहले महाराष्ट्र सरकार द्वारा दाखिल हलफनामे पर जवाब देते हुए यूजीसी ने कहा, ‘एक ओर राज्य सरकार (महाराष्ट्र) कह रही है कि छात्रों के हित के लिए शैक्षणिक सत्र शुरू किया जाना चाहिए, वहीं दूसरी ओर अंतिम वर्ष की परीक्षा रद्द करने और बिना परीक्षा उपाधि देने की बात कर रही है. इससे छात्रों के भविष्य को अपूरणीय क्षति होगी. इसलिए यह स्पष्ट है कि राज्य सरकार के तर्क में दम नहीं है.’
विश्वविद्यालयों में अंतिम वर्ष की परीक्षा की सुनवाई सुप्रीमकोर्ट में टली
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