लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद देश में राजनीति शुरू हो गई है, जहां महाराष्ट्र में महायुती को मिली कम सीटों को लेकर अब एनडीए नेताओं ने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए बड़ा बयान दिया है. आरएसएस के मुखपत्र ‘ऑर्गनाइजर’ के अनुसार, महाराष्ट्र में बीजेपी की हार का एक प्रमुख कारण उपमुख्यमंत्री अजित पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी के साथ गठबंधन था.
अब यह अटकलें लगाई जा रही हैं कि बीजेपी अजित पवार के साथ अपने संबंध तोड़ सकती है. आगामी विधानसभा चुनावों में बीजेपी मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की अगुवाई वाली शिवसेना के साथ मिलकर चुनाव लड़ने पर विचार कर रही है. वहीं’एक अंग्रेजी अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक, आरएसएस ने बीजेपी नेतृत्व के एनसीपी को तोड़ने और लोकसभा चुनाव से पहले पवार के नेतृत्व वाले गुट के साथ गठबंधन करने के फैसले पर अपनी नाखुशी जाहिर की है.
आपको बता दें कि नाम न बताने की शर्त पर एक वरिष्ठ बीजेपी नेता ने कहा, ”आरएसएस और बीजेपी के कार्यकर्ताओं को पवार विरोधी नारे लगाकर तैयार किया गया था. सिंचाई और महाराष्ट्र राज्य सहकारी बैंक घोटालों से जुड़े होने के कारण वे अजित पवार के विरोधी थे लेकिन जब अजित पवार ने बीजेपी के साथ हाथ मिलाया, तो पवार विरोधी बयान पीछे छूट गए. घाव पर नमक छिड़कते हुए उन्हें महायुति सरकार में उपमुख्यमंत्री बना दिया गया.”
वहीं नेता ने आगे कहा, ”लोकसभा चुनावों में यह स्पष्ट था कि आरएसएस और बीजेपी के कार्यकर्ता एनसीपी उम्मीदवारों के लिए प्रचार करने के लिए तैयार नहीं थे और कई जगहों पर उदासीन रहे. नतीजतन, 2019 में बीजेपी की सीटों की संख्या 23 से घटकर 2024 में केवल नौ रह गई.” आजीवन आरएसएस कार्यकर्ता रतन शारदा ने ‘ऑर्गनाइजर’ में अपने लेख में लिखा कि अजित पवार के साथ गठबंधन करने से ‘बीजेपी की ब्रांड वैल्यू’ कम हो गई और यह ‘बिना किसी अंतर वाली एक और पार्टी’ बन गई.
इसके अलावा सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, बीजेपी नेतृत्व इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों में अजित पवार के साथ गठबंधन न करने के प्रभावों पर विचार-विमर्श कर रहा है. ”अगर हमारी पार्टी अजित पवार को छोड़ देती है और विधानसभा चुनावों में शिंदे के साथ आगे बढ़ती है, तो ऐसा लग सकता है कि बीजेपी ने अजित पवार का इस्तेमाल किया और बाद में उन्हें छोड़ दिया. यह ‘उपयोग करो और फेंको’ की नीति उल्टी पड़ सकती है लेकिन एक और परिदृश्य यह भी है कि अजित पवार को सहयोगी के रूप में रखना भी लाभकारी साबित नहीं हो सकता है.’
आपको बताते चले कि बीजेपी की अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि अजित पवार के साथ गठबंधन का निर्णय कार्यकर्ताओं के मनोबल पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है. इससे न केवल बीजेपी की छवि को नुकसान पहुंचा है, बल्कि पार्टी की चुनावी रणनीति भी कमजोर हुई है. पार्टी में अब इस बात पर मंथन चल रहा है कि आगामी विधानसभा चुनावों में किस प्रकार की गठबंधन रणनीति अपनाई जाए ताकि पार्टी को अधिकतम लाभ हो सके.
हालांकि, अब भाजपा को यह तय करना है कि वह अजित पवार के साथ गठबंधन जारी रखेगी या उन्हें छोड़कर एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना के साथ चुनाव लड़ेगी. हर विकल्प के अपने फायदे और नुकसान हैं और पार्टी नेतृत्व को इस बात पर गहराई से विचार करना होगा कि कौन सा निर्णय उसके लिए सबसे अधिक लाभकारी हो सकता है.