विश्व धरोहर के रूप में प्रसिद्ध नंदा देवी बायोस्फीयर रिजर्व के ऋषिगंगा कैचमेंट एरिया में जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं. वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की ओर से कराए गए अध्ययन में यह खुलासा हुआ है. अध्ययन के मुताबिक, वर्ष 1980 से 2017 के बीच ग्लेशियर में तकरीबन 10 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है.
1980 में नंदा देवी बायोस्फीयर रिजर्व के ऋषिगंगा कैचमेंट का कुल 243 वर्ग किमी एरिया बर्फ से ढका था, लेकिन 2017 में यह एरिया 217 वर्ग किमी ही रह गया. सेटेलाइट डेटा के आधार पर निष्कर्ष निकाला गया है कि 37 सालों में हिमाच्छादित क्षेत्रफल में 26 वर्ग किलोमीटर की कमी आई है.
यही नहीं इस क्षेत्र में पहले स्थायी स्नो लाइन 5200 मीटर पर थी, जो अब 5700 मीटर तक घट बढ़ रही है. उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र के निदेशक प्रो. एमपीएस बिष्ट के निर्देशन में हुए इस अध्ययन में शोध छात्र डॉ. मनीष मेहता और श्रीकृष्ण नौटियाल भी शामिल थे.
दक्षिणी ढलान पर ज्यादा असर
देहरादून. अध्ययन में कहा गया है कि ऋषि गंगा कैचमेंट एरिया की उत्तरी ढलान के ग्लेशियर ज्यादा प्रभावित नहीं हुए हैं, लेकिन दक्षिणी ढलान के ग्लेशियर में बदलाव देखा गया है. इस ओर के ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं. नंदा देवी बायोस्फीयर रिजर्व के ग्लेशियर यदि इसी तरह से पिघलते रहे तो आने वाले समय में इस क्षेत्र के वन्य जीव जंतुओं और वनस्पतियों पर भी बुरा प्रभाव पड़ेगा.
वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के अध्ययन में कहा गया है कि नंदा देवी बायोस्फीयर रिजर्व क्षेत्र में पहले की तुलना में बर्फबारी में कमी आई है. तापमान में हुई बढ़ोतरी की वजह से इस क्षेत्र में बर्फवारी कम होने के साथ ही बारिश होने लगी है जिससे ग्लेशियर पिघलने की गति में तेजी आई है.
ब्लैक कार्बन से पिघल रहे हिमालय के ग्लेशियर
अल्मोड़ा. जंगलों में लगातार बढ़ रही आग की घटनाएं और वाहन प्रदूषण का असर ग्लेशियरों पर दिखाई दे रहा है. ग्लेशियर में ब्लैक कार्बन की मौजूदगी ने वैज्ञानिकों को चिंता में डाल दिया है. वैज्ञानिकों का भी मानना है कि अगर हिमालय में ब्लैक कार्बन का असर लगातार बढ़ता रहा तो इससे ग्लेशियर तेजी से पिघलेंगे.
गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. जेसी कुनियाल ने बताया कि ग्लेशियर में ब्लैक कार्बन के असर से बर्फ तेजी से पिघलती है. उन्होंने बताया कि हिमाचल प्रदेश के ग्लेशियर में जो उन्होंने शोध किए उसमें भी ये बात सामने आई है. उन्होंने कहा कि लगातार ग्रीन हाउस गैसों का बढ़ता दबाव भी इसकी एक वजह है.
उन्होंने बताया कि हिमाचल में स्थित पार्वती ग्लेशियर और व्यास ग्लेशियर कुल्लू वैली में ब्लैक कार्बन की मौजूदगी पाई गई है. यदि यह लगातार बढ़ता गया तो इससे हिमालय पर धीरे-धीरे असर पड़ेगा. वैज्ञानिकों ने बताया कि बड़े ग्लेशियरों के सापेक्ष छोटे ग्लेशियर ज्यादा पिघल रहे हैं. पिंडारी ग्लेशियर 15 मीटर प्रति साल की दर से पिघल रहा है. जबकि गंगोत्री ग्लेशियर 8 मीटर प्रति साल की दर से पिघल रहा है. हिमाचल में भी छोटे ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं.
नंदा देवी बायोस्फीयर रिजर्व के ऋषिगंगा कैचमेंट एरिया में ग्लेशियर में कई तरह के बदलाव नजर आए हैं. 1980 से लेकर 2017 के सेटेलाइट डेटा के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया है. वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को इसकी रिपोर्ट दी गई है.
प्रो एमपीएस बिष्ट, निदेशक, उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र
साभार -लाइव हिंदुस्तान