सोमवार को सेंटर फॉर सेलुलर एंड मॉलीकुलर बायलॉजी (CCMB) में अटल इनकुबेशन सेंटर के सीईओ डॉ. एन मधुसूदन राव ने बड़ी जानकारी देते हुए कहा है कि भारत ने कोरोना के खिलाफ एमआरएनए (mRNA)टेक्नोलॉजी विकसित कर ली है.
एमआरएनए टेक्नोलॉजी आधारित वैक्सीन का एक बड़ा फायदा है. वह है फ्लेक्सिबिलिटी का. यह दूसरी वैक्सीनों के साथ नहीं है. मधुसूदन राव ने यह बात ऐसे समय कही है जब देश में कई जगहों पर कोरोना के मामले तेजी से बढ़े हैं.
हैदराबाद स्थित सीसीएमबी ने हाल में ऐलान किया था कि वह पहली संभावित एमआरएनए वैक्सीन विकसित करने वाला है. यह कोरोना के खिलाफ काम करेगी. अन्य तरह की वैक्सीन की तुलना में इसके साथ फ्लेक्सिबिलिटी का बड़ा एडवांटेज है.
क्या है mRNA टेक्नोलॉजी?
mRNA मैसेंजर आरएनए टेक्नोलॉजी है. इस तरह का आरएनए डीएनए का सीक्वेंस होता है. यह प्रोटीन बनाने के लिए ब्लूप्रिंट होता है. एमआरएनए वैक्सीन में एमआरएनए स्पाइक प्रोटीन की सीक्वेंस इनफॉर्मेशन ले जाता है. यह एमआरएनए लिपिड फॉर्म्यूलेशन से कवर होता है. इसी को शरीर में इंजेक्ट किया जाता है. शरीर की कोशिकाओं में यह स्पाइक प्रोटीन बनाता है. ये स्पाइक प्रोटीन कोरोना से लड़ने के लिए एंटीबॉडी बनाते हैं.
क्यों है बड़ी उपलब्धि?
एमआरएनए प्लेटफॉर्म के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. राव ने बताया कि महामारी के लिए पश्चिमी देश सिर्फ एमआरएनए वैक्सीन का इस्तेमाल करते थे. यह और बात है कि दूसरे देशों तक यह नहीं पहुंच पाई. अब हम कह सकते है कि कोरोना के खिलाफ हमारे पास एमआरएनए टेक्नोलॉजी है. कोरोना के संदर्भ में डॉ राव ने कहा कि इसमें वैरिएंट ऑफ कन्सर्न तेजी से बदलते हैं. उस लिहाज से एमआरएनए वैक्सीन को तेजी से रीडिजाइन किया जा सकता है. दूसरी वैक्सीनों के साथ ऐसा नहीं है. उन्हें नए वैरिएंट के साथ मुकाबला करने के लिए थोड़ा अधिक समय की जरूरत पड़ती है.
और क्या है फायदा?
दूसरा बड़ा फायदा इन वैक्सीन का किफायती होना है. छोटे से सेटअप में लाखों डोज बनकर तैयार हो जाते हैं. इंफ्रास्ट्रक्चर की लागत कम होने से वैक्सीन बनाने पर होने वाला खर्च काफी कम हो जाता है. सबसे बड़ी बात यह है कि हम दिखाना चाहते थे कि हम भी ऐसा कर सकते हैं. इस तरह की वैक्सीन ने मलेरिया, डेंगू और टीबी जैसी भारत केंद्रित बीमारियों के लिए उम्मीद की किरण जगा दी है. यह प्लेटफॉर्म इनमें मददगार साबित हो सकता है.
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