आज रात कई राजनीतिक दलों के नेताओं को नींद नहीं आएगी. आइए इसका कारण भी जान लेते हैं. घबराहट, सियासत में महत्वकांक्षी आकांक्षाएं, सत्ता के सिंहासन पर अपनी ताकत बरकरार रखने के लिए फैसले का बेसब्री से इंतजार, अगर इस बार चूके तो यह मौका पांच साल बाद ही मिलेगा आदि सियासी विचार नेताओं को नींद कहां आने देंगे. कल 2 मई रविवार है. पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव का सबसे ‘बड़ा इम्तिहान’.
विभिन्न राजनीतिक दलों की किस्मत का फैसला भी होगा. आज भारतीय जनता पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, कांग्रेस, डीएमके, एआईएडीएमके और लेफ्ट समेत अन्य राजनीतिक दलों के नेता पूरी रात सो नहीं पाएंगे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह ने जहां बंगाल की सत्ता पाने के लिए सियासत के सभी ‘हथियार’ चला दिए हैं.भाजपा ने बंगाल का चुनाव पूरी ‘आक्रामकता’ के साथ लड़ा है. ‘मोदी-शाह की जोड़ी ने बंगाल जीतने को प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाया’. वहीं दूसरी ओर टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी ने भी बंगाल को लगातार तीसरी बार अपने पास रखने के लिए भाजपा से डटकर मुकाबला किया.
‘इस सबके बाद भी ममता अगर बंगाल की अपनी सरकार बचाने में कामयाब रहती हैं, तो वह राष्ट्रीय स्तर पर मोदी सरकार विरोधी गठजोड़ का नेतृत्व करने की सबसे बड़ी दावेदार बन जाएंगी’. अगर ममता बनर्जी चुनाव हार जाती हैं तो उनकी पार्टी में बगावत के सुर और तेज हो सकते हैं.पांच राज्यों के चुनाव में सबसे अधिक बंगाल चुनाव परिणाम को लेकर पूरे देश भर की निगाहें लगी हुई है. इसके अलावा असम, तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी के चुनाव परिणामों का बेसब्री से इंतजार है. रविवार को सुबह 8 बजे से वोटों की गिनती शुरू हो जाएगी. इसके कुछ समय बाद ही रुझान आने लगेंगे.
शाम तक तय हो जाएगा कि किस राज्य में कौन सरकार बना रहा है. यहां हम आपको बता दें कि पश्चिम बंगाल सहित 5 राज्यों का विधानसभा चुनाव 27 मार्च से शुरू होकर 29 अप्रैल को खत्म हुए हैं. फाइनल नतीजों से पहले सारे एग्जिट पोल्स सामने आ गए हैं. अगर एग्जिट पोल्स की माने तो पश्चिम बंगाल में एक बार फिर दीदी की वापसी होती दिख रही है. वहीं असम में बीजेपी लगातार दूसरी बार सरकार बना सकती है.
तमिलनाडु में डीएमके सरकार में आती दिख रही है. कल आने वाले चुनाव परिणामों में अगर बंगाल की जनता भारतीय जनता पार्टी को अपना जनमत नहीं देती है तो मोदी और अमित शाह की सियासत पर भी ‘सवाल’ खड़ा होगा. इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि बंगाल चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ममता बनर्जी के बीच सीधा लड़ा गया. पार्टी को बंगाल में काबिज कराने के लिए पीएम मोदी ने कोरोना संकट काल में भी बड़ी-बड़ी चुनावी सभाएं भी की.
भाजपा के शीर्ष दिग्गज नेता अगर ममता बनर्जी को इतने सियासी दांवपेच अपनाने के बाद भी नहीं हरा पाए तो देश भर में भाजपा की रणनीति भी कमजोर होगी. दूसरी ओर बंगाल की सत्ता पर पिछले एक दशक से ममता बनर्जी का कब्जा है. गौरतलब है कि 2016 के विधानसभा चुनाव में राज्य की कुल 294 सीटों में से टीएमसी ने सबसे ज्यादा 211 सीटें जीतकर सत्ता पर काबिज हुई थी. कांग्रेस को 44 सीटें, लेफ्ट को 26 सीटें और बीजेपी को महज तीन सीटें हासिल हुई थी.
वहीं अन्य ने 10 सीटों पर जीत हासिल की थी. अगर इस बार दीदी बंगाल की सत्ता पर नहीं आ पाती हैं तो उनकी भी सियासत बहुत पीछे चली जाएगी. ऐसे ही कांग्रेस के सांसद राहुल गांधी को इन चुनाव के दौरान दक्षिण भारत की राजनीति खूब ‘रास’ आई. कांग्रेस पार्टी ने मुख्य रूप से असम और केरल में अपना पूरा ध्यान लगाया. एग्जिट पोल आने से पहले संभावना जताई जा रही थी कि कांग्रेस असम और केरल में अच्छा प्रदर्शन करेगी.
लेकिन एग्जिट पोल में असम में भाजपा की बढ़त दिखाई गई तो केरल में लेफ्ट की सरकार बनती दिखाया गया है. अगर इन दोनोंं राज्यों में कांग्रेस का प्रदर्शन अच्छा नहीं होता है तो राहुल गांधी की सियासत और उनकी नेतृत्व क्षमता पर पार्टी के बगावती नेता सवाल उठाने के लिए तैयार बैठे हैं.
शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार
मतगणना कल: कल बहुतों की बदलेगी सियासत की दिशा और दशा, जीत का सेहरा किसके सिर बंधेगा!
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