कैसा है यूपी का जनसंख्या नियंत्रण कानून! जिसका उत्तराखंड कर रहा अध्ययन

देहरादून| जनसंख्या नियंत्रण विधेयक के लिए यूपी सरकार ने जो मसौदा तैयार किया है, वह उत्तराखंड के लिए अच्छा खासा संसाधन साबित हो सकता है. वास्तव में, उत्तराखंड सरकार अपने राज्य की जनसांख्यिकीय और सामाजिक स्थितियों के मद्देनज़र अपना अलग कानून बनाने की कवायद कर रही है, जिसके लिए यूपी के मसौदे का अध्ययन किया जा रहा है.

एक अंग्रेजी अखबार की खबर के मुताबिक, यह कवायद पुष्कर सिंह धामी सरकार ने दो महीने पहले शुरू कर दी थी. जब आरएसएस से संबंद्ध 35 पदाधिकारियों ने सीएम धामी से मुलाकात कर राज्य में असम और उत्तर प्रदेश की तर्ज पर जनसंख्या नियंत्रण कानून लाने की मांग की थी.

देहरादून में हुई इस बैठक के बाद ही सीएम धामी ने 15 अगस्त के अपने भाषण में यह ऐलान कर दिया था कि एक कमेटी बनाई गई, जो राज्य में इस तरह के असरदार कानून के लिए ज़रूरी तथ्य और परामर्श देगी.

अब खबर में गृह मंत्रालय के एक अधिकारी के हवाले से कहा गया, ‘वह कमेटी हालांकि अभी तक नहीं बनी है, लेकिन जनसंख्या कानून के लिए यूपी के मसौदे का अध्ययन किया जा रहा है. राज्य के विधि विभाग के पास इसे भेजा गया है. जल्द ही उत्तराखंड में भी एक ऐसा कानून होगा.’

कैसा है यूपी का जनसंख्या नियंत्रण कानून?
पिछले महीने उत्तर प्रदेश के विधि ​आयोग ने इस कानून का जो मसौदा सीएम कार्यालय को सौंपा, उसके अनुसार कहा जा रहा है कि इसमें प्रजनन दर को कम करने के लिहाज़ से दो से बच्चे होने पर अभिभावकों के लिए भत्ते आदि कम करने की सलाह दी गई है. वहीं, जो अभिभावक दो से बच्चे पैदा न करने का विकल्प अपनाते हैं, उन्हें कई तरह के लाभ देने की भी. इसके अलावा, और भी बहुत कुछ प्रावधान रखे गए हैं :

1. दो से बच्चे हों तो सरकारी लाभ न दिए जाएं.
2. ऐसे लोगों को स्थानीय निकाय चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित किया जाए.
3. ऐसे लोगों को सरकारी नौकरी के लिए आवेदन से वंचित किया जाए.
4. ऐसे लोगों को सरकारी सब्सिडी से भी वंचित किया जाए.

धामी सरकार का क्या है रुख?
बीते शुक्रवार को ही धामी सरकार ने एक आधिकारिक बयान में यह बात कबूल की थी कि उत्तराखंड के कुछ हिस्सों में एक समुदाय विशेष की आबादी बढ़ने से कुछ समुदायों के सामने पलायन तक की स्थिति बन रही है. यही नहीं, जनसंख्या असंतुलन की वजह से सांप्रदायिक तनाव बढ़ने के भी आसार हैं. इस बयान को जनसंख्या कानून के तर्क के रूप में समझा गया.

हालांकि एक अंग्रेजी अखबार की खबर में कहा गया है कि यूपी के कानून मसौदे के अध्ययन पर उत्तराखंड के विधि विभाग ने प्रतिक्रिया देने से इनकार किया.

साभार-न्यूज 18

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