उत्‍तराखंड

21 साल का युवा उत्तराखंड: क्या कुछ हासिल किया और क्या पाना है शेष!

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9 नवम्बर 2000 को जन्मा उत्तराखंड 22वें साल में प्रवेश कर चुका है. इन सालों में यहां बारी-बारी से बीजेपी और कांग्रेस की सत्ता ही रही है. इन 21 सालों के सफर पर निगाह डालें तो, राज्य ने काफी कुछ हासिल भी किया है. राज्य बनने से पहले उत्तराखंड में सिर्फ एक मेडिकल कॉलेज हुआ करता था, लेकिन अब 6 हैं और 3 मेडिकल कॉलेज पाइपलाइन में हैं. यही नहीं, छोटे से राज्य में आईआईएम के साथ ही एनआईटी भी है.

कई नई यूनिवर्सिटियां भी बनी हैं. कैबिनेट मंत्री बिशन सिंह चुफाल कहते हैं कि रोज़गार, पर्यटन, शिक्षा और पलायन को लेकर नीतियां बनीं, जिन पर अमल भी हुआ. नतीजा ये है कि राज्य विकास के सफर पर आगे बढ़ रहा है.

इन सालों में कुछ हासिल करना भले ही शेष रह गया हो, लेकिन कई आयाम भी स्थापित हुए हैं. खासकर एजुकेशन, मेडिकल एजुकेशन, खेती-बागवानी और इन्फ्रा स्ट्रक्चर के क्षेत्र में राज्य अग्रणी होने की दिशा में बढ़ा है. तरक्की की मिसाल यह है कि 1 करोड़ 10 लाख की आबादी वाले इस छोटे से राज्य में आईआईएम भी है और आधा दर्जन मेडिकल कॉलेज भी.

सड़कों का नेटवर्क भी बढ़ रहा है तो तीर्थों का विकास भी एक अहम पहलू बना हुआ है. हालांकि पहाड़ों तक अब भी विकास की लहर नहीं पहुंची है और आपदाओं को लेकर अब भी सटीक सिस्टम नहीं बनने की गुंजाइश बनी हुई है.

सड़कों के लिहाज से देखें तो कुमाऊं और गढ़वाल में ऑलवेदर रोड का जाल बिछ रहा है. यही नहीं, सैकड़ों गांवों को भी सड़कों से जोड़ा भी गया है. इसके बावजूद पहाड़ों पर अपेक्षित विकास न होने से पलायन बड़ी समस्या बना हुआ है. राज्य की पहली निर्वाचित सरकार में ही हरिद्वार और रुद्रपुर में सिडकुल बन गए थे, जो राज्य के विकास में मील के पत्थर साबित हुए.

इस दौरान राज्य में पढ़े-लिखे युवाओं ने जहां पर्यटन को रोज़गार का ज़रिया बनाया, वहीं खेती और बागवानी के क्षेत्र में भी तरक्की हुई. बॉर्डर के इलाकों में होम स्टे के ज़रिए रोज़गार के नए दरवाज़े भी खुले.

कांग्रेस प्रदेश उपाध्यक्ष और पूर्व विधायक मयूख महर का मानना है कि 21 साल के सफर में राज्य ने काफी कुछ हासिल किया है, लेकिन अभी भी बहुत कुछ हासिल करना शेष है. जिन भावनाओं के अनुरूप राज्य का निर्माण हुआ था, वो अभी अधूरी हैं. अब एक निगाह उन पहलुओं पर भी, जो बताते हैं कि 21 साल के इस सफर में क्या कमियां रही हैं.

खासकर पहाड़ी इलाकों को वो तरजीह नहीं मिली, जिसकी दरकार थी. यही वजह है कि परिसीमन के बाद पहाड़ों से विधानसभा सीटें कम हुई हैं और मैदानों में बढ़ी हैं, जिससे साफ है कि पहाड़ से पलायन रुका नहीं है. वहीं, आपदा प्रबंधन और पूर्वानुमान को लेकर तरक्की की ज़रूरत बनी हुई है.

ऐसे में अब ज़रूरत इस बात है कि पहाड़ों में शिक्षा और स्वास्थ्य के साथ आवाजाही का मज़बूत ढांचा खड़ा किया जाए, ताकि उत्तराखंड आदर्श राज्य बनने की तरफ बढ़ सके.

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